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50 साल के महमूद ने बताया, ‘मेरा परिवार बहुत ही गरीब है। सभी चीजें मेरे बस से बाहर की थीं। एक वक्त के खाने का जुगाड़ कर पाना भी मेरे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था। इसलिए मैंने सड़कों पर भीख मांगने की बजाय पत्ते खाकर गुजारा करना ही सही समझा।’
अब काम होने और वह खाने का इंतजाम कर सकने के बावजूद भी महमूद ने खाने की पुरानी आदत को बरकरार रखा है। महमूद ने बताया कि पत्तियां और लकड़ी खाना अब मेरी आदत बन चुकी है। मालों की ढुलाई का काम करने वाले महमूद की नजरें पेड़ों के पत्तों पर ही बनी रहती हैं उसे बरगद और शीशम जैसे पेड़ों की पत्तियां अधिक पसंद है।
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