गौरतलब है कि इस न्यायाधिकरण का फैसला अंतिम होता है, जिसके खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती। मार्शल द्वीपसमूह के वकील फॉन वैन डेर बाइसेन ने पत्रकारों को बताया, ‘‘निश्चित तौर पर यह बेहद निराशाजनक है।’’ साल 2014 में मार्शल द्वीपसमूह ने नौ देशों पर आरोप लगाया था कि वे 1968 की परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर अमल करने में नाकाम रहे हैं। हालांकि, आईसीजे ने चीन, फ्रांस, इस्राइल, उत्तर कोरिया, रूस और अमेरिका के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई करने से पहले ही इनकार कर दिया, क्योंकि वे इस अदालत के अधिकार क्षेत्र को नहीं मानते। इस्राइल ने अपने पास परमाणु हथियार होने की बात कभी औपचारिक तौर पर नहीं स्वीकार की है।
मार्शल द्वीपसमूह की दलील थी कि परमाणु हथियारों की होड़ पर लगाम नहीं लगाकर ब्रिटेन, भारत और पाकिस्तान ने संधि का उल्लंघन किया है । हालांकि, भारत और पाकिस्तान ने एनपीटी पर अब तक दस्तखत नहीं किए हैं। मार्च में हुई सुनवाई में मार्शल द्वीपसमूह की ओर से पेश हुए वकीलों ने बिकिनी और एनेवेटाक प्रवालद्वीपों पर किए गए 67 परमाणु परीक्षणों के बाद की खौफनाक तस्वीरें सामने रखी थी। मार्शल द्वीपसमूह के पूर्व विदेश मंत्री टोनी डीब्रम ने अदालत को बताया, ‘‘मेरे देश में कई द्वीप गैस में बदल गए और अन्य की हालत के बारे में ऐसे अनुमान हैं कि उन पर अगले हजारों साल तक रहने लायक हालात नहीं होंगे।’’ मार्च और अप्रैल 1954 में हुए तथाकथित ‘‘ऑपरेशन कैसल’’ खास तौर पर तबाही मचाने वाले थे।