दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज बैंकों के बहीखातों की साफ-सफाई और उनके 100 अरब डॉलर से अधिक के फंसे कर्ज की स्थिति में सुधार लाने के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा उठाए गए तमाम कदमों की सराहना की।
निजी क्षेत्र के करूर वैश्य बैंक के शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आपने अक्सर बैंकिंग प्रणाली की गैर-निष्पादित आस्तियों :एनपीए: के बारे में सुना होगा। यह चिंता का विषय है और रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से हाल ही में सेवानिवृत्त रघुराम राजन ने इस व्यवस्था को सही दिशा में ले जाने के लिए कई उपयुक्त कदम उठाए हैं।’’ उन्होंने कहा कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर निष्पादित आस्तियां :एनपीए: उनके सकल रिण के मुकाबले मार्च 2015 में 10.90 प्रतिशत थीं जो कि मार्च 2016 में बढ़कर 11.40 प्रतिशत हो गईं। एनपीए के लिए कुल प्रावधान 73,887 करोड़ रपये से बढ़कर 1,70,630 करोड़ रपये तक पहुंच गया।
इसी तरह बैंकों का शुद्ध लाभ मार्च 2015 में जहां 79,465 करोड़ रपये पर था वह घटकर मार्च 2016 में 32,285 करोड़ रपये पर आ गया।
उन्होंने कहा कि एनपीए का बढ़ना ‘अच्छी स्थिति’ नहीं है। यह राशि जो कि कर्ज में फंसी है उसे भी वाणिज्यिक तौर पर वितरण के लिए उपलब्ध होना चाहिए।
रिजर्व बैंक गवर्नर के पद पर तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद राजन 4 सितंबर 2016 को सेवानिवृत हो गये। उन्होंने बैंकों को कर्ज और उसकी वसूली के मामले में अपनी सही स्थिति बताने को मजबूर किया। उन्होंने बैंकों को हर छह माह में अपनी संपत्ति–गुणवत्ता की समीक्षा पर जोर दिया जिससे कि पिछले वित्त वर्ष में बैंकों की फंसे कर्ज की राशि में काफी वृद्धि हुई।
मुखर्जी ने कहा कि इस बात पर गौर करते हुये कि :विदेश: में एक निजी बैंक की गड़बड़ी से ऐसा अंतरराष्ट्रीय वित्त संकट खड़ा हो सकता है कि विश्व उससे अब तक उबर नहीं पाया है। इस स्थिति को देखते हुये भारतीय अर्थव्यवस्था और उसकी बैंकिंग प्रणाली ने बेहतर काम किया है।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्वबैंक साल दर साल अपने अनुमानों को बदलते जा रहे हैं क्योंकि एक के बाद एक संकट से विश्व अर्थव्यवस्था को झटका लग रहा है और विश्व की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन कुल मिलाकर उतना अच्छा नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि उस समय हर कोई यह बात कह रहा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब अधिकतर बड़े बैंकिंग संस्थान परेशानी में हैं, सूझबूझ भरे प्रबंधन और भ्रष्ट आचरण से दूर रहने से भारतीय बैंकिंग व्यवस्था मजबूत बनी रही।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘वह खुश हैं कि देश के मूल आधार और मजबूत वृहद आर्थिक संकेतकों से भारतीय अर्थव्यवस्था कमोबेश अच्छा कर रही है।’’