ईरान से भारत ने पिछले साल जितना कच्चा तेल खरीदा था, उसमें इस साल एक चौथाई कटौती करने की योजना है। नई दिल्ली और तेहरान के बीच एक नैचरल गैस फील्ड को विकसित करने को लेकर विवाद हो गया है, जिसके चलते भारत ईरान से खरीदने वाले कच्चे तेल में कटौती की योजना बना रहा है। ईरान के फरजाद बी नैचरल गैस फील्ड को लेकर ईरान और भारत के बीच विवाद चल रहा है। अगर भारतीय कंपनियों के संघ को इस फील्ड को विकसित करने का अधिकार नहीं दिया जाता है तो भारतीय तेल कंपनियों से ईरान से खरीदारी में कटौती करने के लिए कहा जाएगा। विवाद का हल न होने की स्थिति में सरकारी तेल कंपनियां-हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम, मेंगलुरु रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स लि. एवं इंडियन ऑइल कॉर्प ईरान से अपनी खरीदारी में कटौती करेगी।
मामले के जानकार सूत्रों के मुताबिक, इस कटौती के बाद ईरान से भारत आयात होने वाले तेल का परिमाण इस साल 3,70,000 बैरल प्रति दिन होगा। चीन के बाद भारत ईरान का सबसे बड़ा तेल ग्राहक है। शिपिंग डेटा के मुताबिक, पिछले साल ईरान से 5,10,000 बैरल प्रति दिन कच्चे तेल का आयात हुआ था। सूत्रों के मुताबिक, ईरान से आयात होने वाले कच्चे तेल में 2017-2018 में जो कटौती की जाएगी, उसमें तेल कंपनियों द्वारा मंगाया जाने वाला 1,99,000 बैरल प्रति दिन कच्चा तेल भी शामिल है यानी पिछले साल के मुकाबले एक तिहाई कटौती होगी। प्राइवेट तेल रिफाइनिंग कंपनियां एस्सार और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लि.(एचएमईएल) ने पिछले साल के टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स को रिन्यू किया है।
इस मामले पर जब सरकारी तेल कंपनियों की राय मांगी गई तो किसी तरह का जवाब नहीं मिला जबकि एस्सार ऑइल, एमआरपीएल और एचएमईएल ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। भारत के तेल मंत्रालय ने भी कहा है कि अभी तुरंत कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
ऐनालिस्ट्स का कहना है कि ईरान से तेल आयात में कटौती करने की एक मुख्य वजह गैस फील्ड विवाद ही नहीं है। सरकार ब्रेंट और दुबई क्रूड के मूल्य का भी फायदा उठाना चाहता है। ब्रेंट क्रूड सस्ता पड़ता है, जिसे खरीदना फायदे का सौदा है।
































































