साइरस मिस्त्री ने टाटा समूह पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। उन्होंने मेल में कहा कि निर्णय प्रक्रिया में बदलाव से टाटा समूह में कई वैकल्पिक शक्ति केंद्र बन गए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका दिए बिना ही भारत के सबसे बडे औद्योगिक समूह के चेयरमैन पद से हटाया गया। मिस्त्री का कहना है कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई ‘चटपट अंदाज’ में की गई। उन्हेंने इसे कॉर्पोरेट जगत के इतिहास की अनूठी घटना बताया।
मिस्त्री ने 25 अक्टूबर को लिखे ई-मेल में कहा, ’24 अक्टूबर 2016 को निदेशक मंडल की बैठक में जो कुछ हुआ, वह हतप्रभ करने वाला था और उससे मैं अवाक रह गया। वहां की कार्रवाई के अवैध और कानून के विपरीत होने के बारे में बताने के अलावा, मुझे यह कहना है कि इससे निदेशक मंडल की प्रतिष्ठा में कोई वृद्धि नहीं हुई।’ मीडिया को जारी इस ई-मेल में उन्होंने लिखा है, ‘अपने चेयरमैन को बिना स्पष्टीकरण और स्वयं के बचाव के लिये कोई अवसर दिये बिना चटपट कार्रवाई में हटाना कॉर्पोरेट इतिहास में अनूठा मामला है।’
मिस्त्री के आरोपों के बारे में टाटा संस से जवाब लेने का प्रयास किया गया लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। टाटा समूह के पूर्व प्रमुख ने कहा कि उन्हें दिसंबर 2012 में जब नियुक्त किया गया था, उन्हें काम करने में आजादी देने का वादा किया गया था लेकिन कंपनी के संविधान में संशोधन, टाटा परिवार ट्रस्ट और टाटा संस के निदेशक मंडल के बीच संवाद सम्पर्क के नियम बदल दिए गए थे।