नूतन के जन्मदिन पर विशेष : जब सीमाएं तोड़ कर उड़ा मन का एक पागल पंछी

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सीमाएं जब टूटती है, तो दायरे बड़े होते जाते हैं।मन का पागल पंछी जब उड़ता है तो नया आकाश खोज लेता है।1950 में बालीवुड में इंट्री करने वाली इस अदाकारा ने भी अपने लिए एक नया आकाश खोजा।चुनौतीपूर्ण अभिनय से फ़िल्मी दुनिया में खुद को स्थापित करने वाली नूतन कभी भी परंपरागत अभिनय के पीछे नहीं भागी।फ़िल्मी दुनिया में नूतन को एक ऐसी एक्ट्रेस के तौर पर जाना जाता है जिन्होने खुद को कहानी में कभी शो पीस नहीं बनने दिया।सुजाता, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, सरस्वतीचंद्र, मिलन और बंदिनी जैसी दर्जनों फ़िल्मों से नूतन ने ये साबित कर दिया कि नायिकाएं भी दर्शकों को थिएटर तक खींचने में कामयाब हैं।

जब जब वो फ़िल्म के पर्दे पर आई, उनकी मुस्कुराहट ने जादू कर दिया। उनकी सादगी, उनके स्टाइल हमेशा के लिए दिलों में घर कर गया। नूतन ना तो मधुबाला की तरह ग्लैमरस थी, नाही नर्गिस की तरह सेंसुवल और ना ही मीना कुमारी की तरह करिश्माई. लेकिन पर्दे पर सादगी ही उनकी संपूर्णता थी- वो सादगी जिस पर पूरा हिन्दुस्तान मर मिटा ।


बला की खूबसूरत नूतन का जन्म 4 जून1936 को मुंबई के एक संभ्रांत हर में हुआ था।नूतन के पिता, कुमारसेन समर्थ, देश के एक नामी कवि और फ़िल्म डॉयरेक्टर थे, नूतन की मां, शोभना समर्थ उस समय की एक जानी मानी हिरोइन थी। कुल मिलाकर नूतन ने बचपन से ही अपने घर में फ़िल्मों का माहौल देखा, और इसी माहौल में पली बढ़ी। हिन्दी फ़िल्मों की एक और मशहूर हिरोइन तनूजा, नूतन की छोटी बहन हैं । नूतन अभी छोटी ही थी तभी उनके माता पिता के बीच तलाक हो गया। 1950 में जब नूतन महज 14 साल की थी तभी उनकी मां ने नूतन को बतौर लीड एक्ट्रेस लेकर एक फ़िल्म बनाई जिसका नाम था हमारी बेटी, लेकिन इस फ़िल्म को दर्शकों ने नकार दिया।1952 में नूतन ने मिस इंडिया का खिताब जीता लेकिन तब भी वो लाइम लाइट में नहीं आ सकी। कहा जा सकता है फ़िल्मी दुनिया में नूतन की शुरूआत संघर्षपूर्ण रही।1950 से लेकर 1954 तक नूतन ने करीब 6 फ़िल्मों में काम किया । ये फ़िल्में थी 1951 में आई हम लोग , 1952 में आई शीशम , 1952 में आई फ़िल्म प्रभात , 1953 में लैला मजनू , और 1954 में शबाब । लेकिन बदकिस्मती से इनमें से कोई भी फ़िल्म नूतन को वो पहचान नहीं दिला सकी जिसकी वो हकदार थी। 1955 में उस समय के मशहूर डॉयरेक्टर आमिया चक्रवर्ती ने नूतन को अपनी एक फ़िल्म में लीड रोल आफ़र किया। इस फ़िल्म में नूतन के अपोजिट बलराज साहनी थे, और ये फ़िल्म थी सीमा। ये फ़िल्म नूतन के करियर में मील का पत्थर साबित हुई। इस फ़िल्म में नूतन ने एक विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को सिल्वर स्क्रीन पर साकार किया। इस फिल्म में नूतन ने सुधार गृह में बंद कैदी की भूमिका निभायी जो चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में अपने दिन काट रही थी। और जेल से भागने की लगातार कोशिश कर रही थी

फ़िल्म सीमा में नूतन ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों में अपनी कभी न मिटने वाली पहचान बनायीं। इस फ़िल्म में दमदार एक्टिंग के लिए नूतन को फ़िल्म फ़ेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का पहला अवार्ड मिला।इस फ़िल्म के बाद नूतन के कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।उसके बाद 1957 में देवानंद के साथ उनकी फ़िल्म पेइंग गेस्ट ने भी उन्हे सफ़लता की उंचाइयों पर पहुंचाया। पेइंग गेस्ट फ़िल्म हिट तो हुई ही, इस फ़िल्म में एसडी बर्मन का संगीत भी दर्शकों के सिर चढ़कर बोलने लगा। फ़िल्म का लगभग हर गाना हिट था- मसलन माना जनाब ने पुकारा नहीं और चांद फ़िर निकला।

958 में किशोर कुमार के साथ नूतन की एक फ़िल्म आई।. एसडी नारंग के डॉयरेक्शन में बनी इस फ़िल्म का नाम था दिल्ली का ठग… नूतन के लिए चुनैतियां मायने नहीं रखती थी। इस बात का अंदाज आप इससे लगा सकते हैं कि दिल्ली का ठग फ़िल्म में उन्होने स्विमिंग कास्ट्यूम पहन कर समाज को चौंका दिया था।अगला साल यानि1959 ने नूतन को फ़िल्मी दुनिया की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इस साल नूतन की दो फ़िल्में ब्लॉक बस्टर साबित हुई।इनमें पहली फ़िल्म थी राजकपूर के साथ फ़िल्म अनाड़ी. और दूसरी फ़िल्म थी सुजाता।

फ़िल्म सुजाता, नूतन के सिने कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई. फिल्म में नूतन ने अछूत कन्या के किरदार को रुपहले पर्दे पर साकार किया. इसके साथ ही फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए वह अपने कैरियर में दूसरी बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गई।

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कहानी ‘बंदिनी’ की

11 अक्टूबर 1959 को नूतन ने नेवी ऑफ़िसर रजनीश बहल के साथ शादी कर ली। शादी करने के बाद नूतन ने फ़िल्मों से एक तरह से संन्यास ले लिया। 11 अगस्त 1961 को नूतन ने अपने बेटे मोहनीस को जन्म दिया। फ़िल्म इंडस्ट्री में तब तक मान लिया गया था कि नूतन अब सिल्वर स्क्रीन पर कभी नहीं दिखाई देंगी।1962 में उस समय के मशहूर डॉयरेक्टर बिमल राय , नूतन के पास एक फ़िल्म की स्क्रिप्ट लेकर पहुंचे और और नूतन को बतौर लीड एक्ट्रेस लेने की इच्छा जाहिर की। नूतन को स्क्रिप्ट इतनी पसंद आई कि उन्होने बिना कुछ सोचे फ़िल्म के लिए हां कर दी और फ़िर से इंड्स्ट्री में सक्रिय हो गई। ये फ़िल्म थी बंदिनी। 1963 में ये फ़िल्म जब रिलीज हुई तो नूतन एक बार फ़िर से बुलंदियों पर पहुंच गई

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इस फ़िल्म में नूतन ने ऐसी दमदार एक्टिंग की ये फ़िल्म, इंडियन फ़िल्म हिस्ट्री में अपनी संपूर्णता के लिए हमेशा याद रखी जाएगी। ये फ़िल्म देख कर आपको भी लगेगा कि नूतन का केवल चेहरा ही नहीं बल्कि उनके हाथ और पैर की उंगलियां तक अभिनय कर सकती हैं. इस फिल्म में अपने जीवंत अभिनय के लिए नूतन को एक बार फिर से बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्म फेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

बंदिनी के बाद नूतन फ़िल्म इंडस्ट्री में एक बार फ़िर से स्टेबलिश हो गई।इसके बाद 1965 में फ़िल्म खानदान नूतन के करियर का एक और ब्लॉक बस्टर फ़िल्म साबित हुई।1967 में जब फ़िल्म मिलन आई तो नूतन के नाम का शोर हर जगह हो ग।इस फ़िल्म के लिए नूतन को एक बार फ़िर से फ़िल्म फ़ेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला। 1968 में आई गोविंद सरैया की फ़िल्म सरस्वती चंद्र एक बड़ी हिट तो साबित ही हुई, इस फ़िल्म के गाने इतने हिट हुए कि आज भी लोग भूले नहीं हैं।1978 में आई राज खोंसला की फ़िल्म मैं तुलसी तेरे आंगन के लिए नूतन को फ़िल्म फ़ेयर के बेस्ट एक्ट्रेस के अवार्ड से एक बार फ़िर से नवाजा गया

1980 के बाद नूतन ने कैरेक्टर रोल करना शुरू कर दिया। लेकिन इस रोल में उनकी जादूगरी चली। जरा याद कीजिए 1985 में आई सुभाष घई की फ़िल्म मेरी जंग को । इस फ़िल्म के लिए नूतन को फ़िल्म फ़ेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड मिला था।

1991 तक नूतन फ़िल्मों में सक्रिय रहीं ।. 21 फ़रवरी 1991 को लंग कैंसर से नूतन की मौत हो गई। उनकी दो फ़िल्में नसीबवाल और इंसानियत उनकी मौत के बाद रिलीज हुई थी ।. नूतन आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन हमारा देश आज भी नूतन को याद करता है।

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