शहंशाह अकबर के शासनकाल में पूरे देश के अंदर गंगा-जमुनी तहजीब और परवान चढ़ी। इस्लाम के साथ-साथ वह सभी अन्य धर्मों का सम्मान करते थे। जहांगीर ने अकबर के मुताल्लिक अपने तुजुक यानी जीवनी में लिखा है, ‘अकबर ने हिंदुस्तान के रीति-रिवाज को आरंभ से सिर्फ ऐसे ही स्वीकार कर लिया, जैसे दूसरे देश का ताजा मेवा या नए मुल्क का नया सिगार या यह कि अपने प्यारों और प्यार करने वालों की हर बात प्यारी लगती है।’ एक लिहाज से देखें, तो अकबर ने भारत में राजनीतिक एकता ही नहीं, सांस्कृतिक समन्वय का भी महान काम किया। इसीलिए इतिहास में उन्हें अकबर महान के रूप में याद किया जाता है।
अकबर ने अपनी सल्तनत में विभिन्न समुदायों के कई त्योहारों को शासकीय अवकाश की फेहरिस्त में शामिल किया था। हरेक त्योहार में खास तरह के आयोजन होते, जिनके लिए शासकीय खजाने से दिल खोलकर अनुदान मिलता। दिवाली मनाने की शुरुआत दशहरे से ही हो जाती। दशहरा पर्व पर शाही घोड़ों और हाथियों के साथ व्यूह रचना तैयार कर सुसज्जित छतरी के साथ जुलूस निकाला जाता। राहुल सांकृत्यायन, जिन्होंने हिंदी में अकबर की एक जीवनी लिखी है, वे इस किताब में लिखते हैं, ‘‘अकबर दशहरा उत्सव बड़ी ही शान-शौकत से मनाता। ब्राह्मणों से पूजा करवाता, माथे पर टीका लगाता, मोती-जवाहर से जड़ी राखी हाथ में बांधता, अपने हाथ पर बाज बैठाता, किलों के बुर्जों पर शराब रखी जाती। गोया कि सारा दरबार इसी रंग में रंग जाता।’’
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