मुगलकाल में मुसलमान भी मनाते थे दिवाली

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अकबर के नौ रत्नों में से एक अबुल फजल ने अपनी मशहूर किताब ‘आईना-ए-अकबरी’ में शहंशाह अकबर के दीपावली पर्व मनाए जाने का तफसील से जिक्र किया है। अकबर दिवाली की सांझ अपने पूरे राज्य में मुंडेरों पर दीये प्रज्वलित करवाते। महल की सबसे लंबी मीनार पर बीस गज लंबे बांस पर कंदील लटकाए जाते थे। यही नहीं, महल में पूजा दरबार आयोजित किया जाता था। इस मौके पर संपूर्ण साज-सज्जा कर दो गायों को कौड़ियों की माला गले में पहनाई जाती और ब्राह्मण उन्हें शाही बाग में लेकर आते। ब्राह्मण जब शहंशाह को आशीर्वाद प्रदान करते, तब शहंशाह खुश होकर उन्हें मूल्यवान उपहार प्रदान करते। अबुल फजल ने अपनी किताब में अकबर के उस दीपावली समारोह का भी ब्योरा लिखा है, जब शहंशाह कश्मीर में थे। अबुल फजल लिखते हैं-‘‘दीपावली पर्व जोश-खरोश से मनाया गया। हुक्मनामा जारी कर नौकाओं, नदी-तट और घरों की छतों पर प्रज्वलित किए गए दीपों से सारा माहौल रोशन और भव्य लग रहा था।’’ दिवाली के दौरान शहजादे और दरबारियों को राजमहल में जुआ खेलने की भी इजाजत होती थी। जैसा कि सब जानते हैं कि दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा होती है, मुगलकाल में गोवर्धन पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ संपन्न होती थी। यह दिन गोसेवा के लिए निर्धारित होता। गायों को अच्छी तरह नहला-धुला कर, सजा-संवार कर उनकी पूजा की जाती। शहंशाह अकबर खुद इन समारोहों में शामिल होते थे और अनेक सुसज्जित गायों को उनके सामने लाया जाता।

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