कांग्रेस ने विचारधारा का ‘‘त्याग’’ कर दिया है: शाह

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दिल्ली
विचारधारा का ‘‘त्याग’’ करने के लिए कांग्रेस पर हमला करते हुए भाजपा प्रमुख अमित शाह ने आज जाति और पारिवारिक राजनीति की निंदा की और अपने सहयोगी रामविलास पासवान का नाम उन नेताओं में गिनाया जिनकी पहचान परिवार से होती है।

लेखकों के सम्मेलन में शाह ने कहा कि विचारधारा की राजनीति ही जाति, निजी हित और परिवार की राजनीति का विकल्प है। उन्होंने दावा किया कि केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकार ही अपने विकास के एजेंडे को लागू कर सकती है क्योंकि वे किसी व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि पार्टी और विचारधारा से जुडी हैं ।

उन्होंने कहा कि राममनोहर लोहिया के निधन के बाद उनका आंदोलन निस्तेज हो गया।

विभिन्न समाजवादी धड़ों की बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक हित के कारण कुछ को कांग्रेस में समाजवाद नजर आया और कुछ को चरण सिंह में। अंतत: समाजवाद की अवधारणा से जुडी सभी विचारधारायें धीरे धीरे जातिवादी दलों में बदल गई। अगर आप बिहार और उत्तरप्रदेश के सभी जाति आधारित दलों की जड़ों को देखें तो आप पाएंगे कि उनकी समाजवादी पृष्ठभूमि रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘10-15 वषरें में वे एक जाति तक सीमित नहीं रहे और अगर आप वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करें तो वे परिवार का प्रतीक बन गए। चाहे यह मुलायम सिंह यादव की पार्टी हो या नीतीश कुमार की या रामविलास पासवान या फिर लालू यादव की पार्टी हो। ये सभी परिवार की पार्टी बन गए। न तो समाजवाद रहा न ही जातिवाद सिर्फ परिवार रह गया।’’ वंशवादी राजनीति के लिए कांग्रेस पर हमला करते हुए शाह ने कहा कि हर कोई जानता है कि कौन इसका अगला अध्यक्ष बनेगा लेकिन भाजपा में कोई नहीं कह सकता कि उनका स्थान कौन लेगा। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस ने विभिन्न विचारधारा के लोगों को आकषिर्त किया क्योंकि देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में यह ‘‘विशेष उद्देश्य’’ के लिए गठित संस्था थी लेकिन इसके बाद धीरे..धीरे यह कमजोर होने लगी क्योंकि इसे एकजुट रखने के लिए विचारधारा की ‘‘कमी’’ हो गई।

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भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू नीत कांग्रेस नया भारत बनाने में विश्वास रखती थी क्योंकि उसका मानना था कि उसके पुराने मूल्य काम नहीं करेंगे लेकिन जनसंघ प्राचीन मूल्यों के आधार पर भारत का पुनर्निर्माण करने में विश्वास रखती थी।

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शाह ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के सभी प्रस्तावों पर एक किताब पढ़ी है लेकिन कोई ठोस विचारधारा नहीं मिली। उन्होंने कहा कि पार्टी के सौ वर्ष पूरे होने पर यह किताब आई थी।

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उन्होंने कहा कि भारत ने जो बहुदलीय लोकतंत्र अपनाया है उसमें राजनीतिक दल और उनकी विचारधाराएं और कार्यक्रम केंद्र में हैं न कि व्यक्तित्व जो लोकतंत्र की राष्ट्रपति प्रणाली में महत्वपूर्ण हैं जो भारत में नहीं है।

भाजपा को ‘‘दस लोगों की पार्टी से दस करोड़ कार्यकर्ताओं’’ तक का सफर बताते हुए उन्होंने कहा कि विचारधारा आधारित पार्टी का विकास धीमा है।