देश की सबसे बड़ी जांच एंजेंसी यानी CBI ने एयर इंडिया और नागर विमानन मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज किए हैं। यूपीए सरकार के दौरान हुए एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय, दोनों कंपनियों द्वारा विमान खरीदी में हुई अनियमितता की जांच होगी। आरोप है कि इन सौदों से सरकारी खजाने को काफी नुकसान हुआ है।
आरोप है कि इन फैसलों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की याचिका पर सीबीआइ को इन मामलों की जांच का आदेश दिया था।
संप्रग सरकार के दौरान एयर इंडिया के लिए 70,000 करोड़ रुपये की लागत से 111 नए विमान खरीदे गए थे। मजेदार बात यह है कि खरीद प्रक्रिया के दौरान ही कई विमानों को लीज पर दूसरी एयरलाइनों को दे दिया गया। यही नहीं, भारी घाटे के बावजूद एयर इंडिया के कमाई वाले रूट भी निजी एयरलाइनो को दे दिए गए। इससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को भारी नुकसान हुआ। रही सही कसर 2011 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय ने पूरी कर दी।
सीबीआइ ने पहले तीन फैसले 111 विमानों की खरीद, उन्हें लीज पर निजी विमानन कंपनियों पर देने और लाभकारी रूटों को निजी विमानन कंपनियों को आवंटित करने की एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जबकि एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के चौथे मामले में प्रारंभिक जांच का केस दर्ज किया गया है। बहरहाल कांग्रेस के लिए इतनी राहत जरूर है कि इस दौरान उड्डयन मंत्रालय में प्रफुल्ल पटेल और अजित सिंह मंत्री रहे। ये दोनों गैर कांग्रेसी दलों के नेता हैं। जाहिर है कि 2जी घोटाले की तरह ही कांग्रेस इसका ठीकरा अपने सहयोगी दलों पर फोड़कर बचने की कोशिश करेगी।
सीबीआई सूत्रों ने कहा कि दोनों सरकारी विमानन कंपनियों के विलय के संबंध में ‘सभी भागीदार’ उसकी ‘निगरानी’ में हैं। उल्लेखनीय है कि इन कंपनियों के विलय की प्रक्रिया तत्कालीन नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने 16 मार्च 2006 को शुरू की थी।
गौरतलब है कि मार्च 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के विलय को फाइनल मंजूरी दी थी। नई एयरलाइन में दोनों के करीब 120 विमान और 30 हजार से ज्यादा कर्मचारी एक हो गए। हालांकि एयरलाइन के सरकारी स्वरूप में बदलाव नहीं हुआ।
अनुमान के मुताबिक एयर इंडिया पर 52,000 करोड़ रुपये की देनदारी है जिसमें से अकेले ब्याज ही 4,000 करोड़ रुपये सालाना है। बीते पांच सालों में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की इस एयरलाइन को 25,000 करोड़ रुपये दिए हैं और 2032 तक इतनी ही रकम और दिए जाने की बात है। इन सभी प्रयासों के बावजूद भी एयर इंडिया को सालाना 3,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। अधिकारियों का मानना है कि कंपनी की मौजूदा हालत के लिए एयर इंडिया-इंडियन एयरलाइंस का विलय भी जिम्मेदार है।