देश के चौकीदार की चोरों से हाथ मिलाने की, काम के नाम पर रोज नए भाषण पिलाने की। कांग्रेस की कविता

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किसानों के कर्ज में डूब जाने की,

आत्महत्या के फंदे पे झूल जाने की,

दलितों पर बार बार जुल्म ढाने की,

हर बुलंद आवाज़ को जबरन दबाने की,

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वेदना…

नोटबंदी से तालाबंदी किये जाने की,

बैंकों की लाइनों में प्राण लिए जाने की,

कामगार का अधिकार छूट जाने की,

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व्यापार के पटरी से उतर जाने की,

अर्थव्यवस्था में भारी मंदी आने की,

वेदना…

देश के चौकीदार की चोरों से हाथ मिलाने की,

काम के नाम नाम पर रोज नए भाषण पिलाने की,

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वेदना…

उम्मीदों के अवशेषों में नहीं शेष संवेदना,

बची है तो बस सत्ता की दी जनवेदना।

 

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