तिहाड़ जेल के इतिहास में पहली बार, महिला जेलर ने संभाला पुरुष कैदियों की जेल का जिम्मा

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दैनिक भास्कर की खास खबर में अंजू के इंटरव्यू की खास बातें सामने आईं, अंजू बताती हैं, ‘मैं इस जिम्मेदारी से बहुत खुश हूं। गर्व का पल होने के साथ-साथ यह बड़ी चुनौती है। लेकिन मैं खुद को साबित करके दिखाऊंगी। मेरी कोशिश रहती है कि जेल से कोई भी कैदी अपराधी बनकर निकले। इसलिए मैं उनसे तरह-तरह की गतिविधियां कराती हूं। सुबह पीटी और मार्च पास्ट कराने के बाद करीब चार घंटे इन्हें पढ़ाया जाता है। अनपढ़ों को लिखना-पढ़ना सिखाया जा रहा है और जो कम पढ़े-लिखें हैं, उन्हें आगे की शिक्षा दिलाई जा रही है। इनकी परीक्षाएं भी जेल में ही होती हैं। इसके अलावा शारीरिक मानसिक रूप से कैदियों को फिट बनाए रखने के लिए रोज करीब दो घंटे उन्हें तरह-तरह के खेलों में व्यस्त रखा जाता है। वॉलिबॉल, बैडमिंटन, टेबिल टेनिस, क्रिकेट, लूडो, कैरम और चेस जैसे खेल खिलाए जाते हैं। मैं कोशिश करती हूं कि हर दिन तमाम कैदियों से खुद मिलूं। उनकी समस्याएं जान सकूं। उन्हें सुलझा सकूं। अक्सर मैं ड्यूटी पूरी होने के बाद भी कुछ देर रुककर कैदियों से बातचीत करती हूं। ताकि वे मेरे साथ सहज हो सकें। खुलकर मुझसे बात कर सकें।’

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यह पूछे जाने पर कि पुरुष जेल में कैदी आपके साथ दुर्व्यवहार नहीं करते? अंजू कहती हैं, यहां ज्यादातर कैदी ऐसे हैं जिन्होंने अनचाही परिस्थितियों में अपराध किया है। वे दिल से अच्छे हैं। जहां तक मुझे पता है कैदी भी मेरे व्यवहार से खुश हैं।

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