उरी हमले के बाद देशभर से पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग उठ रही है। एक बड़ी आबादी को इस पक्ष में हैं कि भारत पाकिस्तान से युद्ध करके उसे कड़ा सबक सिखाए। लेकिन हमले के 10 दिन बाद भी सरकार की तरफ से युद्ध जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। क्या इसकी वजह ये तो नहीं कि युद्ध के लिए भारत के पास पर्याप्त हथियार ही ना हों। जी हां भारत पाकिस्तान से युद्ध करने में कितना सक्षम है ये एक बड़ा सवाल है। हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक भारत युद्ध के लिए भारत की तैयारी जरूरत से कम है और सरकार को विशेषतौर पर पाकिस्तान से जुड़ी अपनी पॉलिसी के संबंध में इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
इकनॉमिक टाइम्स ने सशस्त्र बलों और डिफेंस रिसर्च से जुड़े कई एक्सपर्ट और सेना के कई मौजूदा और रिटायर्ड अधिकारियों से इस बारे में बात की। इनमें से अधिकतर का कहना था कि सेना को असॉल्ट राइफल, कार्बाइन और आर्टिलरी गन जैसे बेसिक आइटम्स की बेहद जरूरत है। यानी भारत के पास युद्ध के लिए जो भारी-भरकम सामग्री होनी चाहिए उसका भारी अकाल है।
नवभारत की खबर में ये भी दावा किया गया है कि युद्ध से पहले भारत को अत्याधुनिक हथियार एयर डिफेंस गन और एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम्स जैसे हाई-एंड वेपन भी चाहिए। इन्हें खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी हो रही है।डिफेंस मिनिस्ट्री सेना के मॉडर्नाइजेशन के लिए पूरे बजट को खर्च करने में नाकाम रही है। इस वजह से 2016-17 के बजट में बजट एलोकेशन में कमी की गई थी। नवभारत का दावा है कि सेना में गोला-बारूद की पर्याप्त सप्लाई नहीं होने को लेकर भी चिंता है। सेना के सूत्रों का कहना है कि सप्लाई के मौजूदा स्तर के मद्देनजर सेना कुछ दिनों तक ही दुश्मन का सामना कर सकती है।
नवभारत की खबर में दावा किया गया है कि यूपीए के बाद जब साल 2014 में एनडीए की सरकार बनी तो भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। हालांकि 2016 के बजट से पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि पीएम मोदी रक्षा बजट को 9 फीसदी तक बढ़ा सकते हैं। लेकिन पिछले दो वर्षों में स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। एक्विजिशन प्रोसेस को बेहतर बनाने की सरकार की कोशिशों का कुछ खास असर नहीं दिखा है। इसके अलावा सशस्त्र बलों के मनोबल में भी कमी आई है। बहुत से वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सैलरी और पेंशन को लेकर लगातार सरकार के साथ टकराव की वजह से सेना के मनोबल पर असर पड़ रहा है और यह स्थिति उच्च स्तरों पर भी नजर आ रही है।
शीर्ष अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर सरकार के हस्तक्षेप से भी सेना के वरिष्ठ अधिकारी नाराज हैं। लेफ्टिनेंट जनरल सुरिंदर सिंह को 15 सितंबर को आर्मी कमांडर नियुक्त किए जाने से पहले वेस्टर्न आर्मी कमांड 10 सप्ताह से अधिक समय तक बिना किसी प्रमुख के काम कर रही थी। यह पंजाब और जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान से लगती सीमा की निगरानी करने वाली इस महत्वपूर्ण कमांड के लिए एक खराब स्थिति थी। गौर करने वाली बात ये है कि सरकार का सेना में हस्तक्षेप कहीं न कहीं देश की सुरक्षा व्यवस्था को चोट पहुंचा रहा है।