सरबजीत ने पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में रहते हुए भारत में भेजी अपनी चिट्ठी में लिखा था –
‘मुझे पिछले दो तीन महीनों से खाने में कुछ मिलाकर दिया जा रहा है। इसे खाने से मेरा शरीर गलता जा रहा है। मेरे बाएं हाथ में बहुत दर्द हो रहा है और दाहिना पैर लगातार कमजोर होता जा रहा है। खाना जहर जैसा है। इसे ना तो खाना संभव है, ना खाने के बाद पचाना संभव है’।
सरबजीत ने चिट्ठी तब लिखी थी जब लाहौर के कोट लखपत जेल में दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया था। लेकिन जेल अफसरों का कसाई से भी बदतर व्यवहार जारी था।
सरबजीत ने जेल में धीमा जहर देने की आशंका जताते हुए लिखा था कि ‘जब भी मेरा दर्द बर्दाश्त से बाहर होता है और मैं जेल अधिकारियों से दर्द की दवा मांगता हूं तो मेरा मजाक उड़ाया जाता है। मुझे पागल ठहराने की पूरी कोशिश की जाती है। मुझे एकांत कोठरी में डाल दिया गया है और मेरे लिए रिहाई का एक दिन भी इंतजार करना मुश्किल हो गया है’।
सरबजीत की चिट्ठी के हर एक लफ्ज ने भिखीविंड के लोगों का कलेजा चाक कर दिया। खुद को बेगुनाह बताते हुए सरबजीत ने लिखा कि ‘मैं एक बहुत ही गरीब किसान हूं और मेरी गिरफ्तारी गलत पहचान की वजह से की गई है। 28 अगस्त 1990 की रात मैं बुरी तरह शराब के नशे में धुत था और चलता हुआ बॉर्डर से आगे निकल गया। मैं जब बॉर्डर पर पकड़ा गया तो मुझे बेरहमी से पीटा गया। मैं इतना भी नहीं देख सकता था कि मुझे कौन मार रहा है। मुझे चेन में बांध दिया गया और आंखों पर पट्टी बांध दी गई’। सरबजीत पर पाकिस्तान की जेल में जुल्म होता रहा और कोर्ट में सारी शिकायतें नजरअंदाज की जाती रही।
‘पाकिस्तान की पुलिस और अदालत नर्क से भी बदतर हैं। वो मुझसे कबूल कराना चाहते हैं कि मैं सरबजीत सिंह नहीं मंजीत सिंह हूं। यहां के सारे जांच अधिकारी मानकर बैठे हैं कि पंजाब प्रांत में हुए धमाके के पीछे मैं ही हूं’।
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