यह सर्जिकल स्ट्राइक इतना आसान ऑपरेशन भी नहीं था। हमला करने वाली एक टीम आतंकियों की जोरदार गोलाबारी में घिर गई। पांचवें मेजर ने तीन आतंकियों को रॉकेट लॉन्चर्स के साथ देखा। ये आतंकी चौथे मेजर की अगुआई में ऑपरेशन को अंजाम दे रही टीम को निशाना बनाने वाले थे। हालांकि, इससे पहले कि ये आतंकी कुछ कर पाते, पांचवें मेजर ने अपनी सेफ्टी की परवाह न करते हुए इन आतंकियों पर हमला बोल दिया। दो को उसने ढेर कर दिया, जबकि तीसरे आतंकी को उसके साथी ने मार गिराया।
इस मिशन में न केवल अफसरों, बल्कि जूनियर अफसरों और पैराट्रूपर्स ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया। शौर्य चक्र से सम्मानित एक नायब सूबेदार ने आतंकियों के एक ठिकाने को ग्रेनेड बरसाकर तबाह कर डाला। इसमें दो आतंकी मारे गए। जब उसने एक आतंकी को अपनी टीम पर फायरिंग करते देखा तो उसने अपने साथी को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इसके बाद उसने आतंकी पर हमला बोल दिया और उसे ठिकाने लगा दिया।
इस ऑपरेशन के दौरान किसी भी भारतीय जवान को अपनी शहादत नहीं देनी पड़ी। हालांकि, निगरानी करने वाली टीम का एक पैराट्रूपर ऑपरेशन के दौरान घायल हो गया। उसने देखा कि दो आतंकी हमला करने वाली एक टीम की ओर बढ़ रहे हैं। पैराट्रूपर ने उनका पीछा किया, लेकिन गलती से उसका पांव एक माइन पर पड़ गया। इस धमाके में उसका दायां पंजा उड़ गया। अपनी चोटों की परवाह न करते हुए इस पैराट्रूपर ने आतंकियों से मोर्चा लिया और उनमें से एक को ढेर कर दिया।
ये पूरी कहानी नवभारत टाइम्स के सौजन्य से हमने आप तक पहुंचाई है, नवभारत टाइम्स ने कुछ सैनिकों के नाम उनकी पहचान छिपाने के मकसद से कहानी में नहीं छापे गए हैं।