चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) को पाकिस्तान अपने हर मर्ज की दवा मान रहा है। इस परियोजना की आड़ में वह अपने छद्म राष्ट्रवादी एजेंडे को थोपने की कवायद भी कर रहा है। ग्वादर बंदरगाह पर बलूचिस्तानी विरोध का दमन करने के बाद अब उसकी निगाह अवैध रूप से दखल किये गये गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र पर है। दशकों से वहां के संसाधनों की लूट से परेशान स्थानीय बाशिंदे इस परियोजना का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
दरअसल चीन के इशारे पर पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को पूर्ण राज्य बनाने जा रहा है। पीओके के साथ ही इस इलाके पर भी भारत दावा करता रहा है और सुरक्षा के नजरिये से भी ये इलाका संवेदनशील है। हालांकि भारत सरकार की ओर से अभी कोई बड़ी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
इससे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से सीमा साझा करने के कारण भारत में उसके इस कदम से चिंता बढ़ सकती है। पाकिस्तान के अंतर प्रांतीय समन्वय मंत्री रियाज हुसैन पीरजादा ने जियो टीवी को बताया कि विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज की अध्यक्षता में एक समिति ने गिलगित-बाल्तिस्तान को एक प्रांत का दर्जा देने का प्रस्ताव दिया है।
पीरजादा ने मंगलवार को कहा, ‘समिति ने यह सिफारिश की है कि गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का प्रांत बनाना चाहिये।’ साथ ही उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र का दर्जा बदले जाने को लेकर संविधान में संशोधन किया जाएगा। इसी क्षेत्र से 46 बिलियन डॉलर की लागत वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपेक) गुजरता है।
पाकिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान को एक अलग भौगोलिक इकाई मानता है। इस क्षेत्र की अपनी विधानसभा और एक निर्वाचित मुख्यमंत्री है। अभी बलूचिस्तान, खबर पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध पाकिस्तान के चार प्रांत है। वहीं गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्त प्रदेश है जहां पाकिस्तान ने 1947 में ही कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान के इस कदम से भारत की चिंताएं बढ़ सकती है क्योंकि इस विवादित क्षेत्र की सीमा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से लगती है।
ऐसा माना जा रहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान की अस्थिर स्थिति को लेकर चीन की चिंताओं के कारण पाकिस्तान को इसका दर्जा बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
पाकिस्तानी पीएम के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर हुए इस फैसले को लागू करने के लिए संविधान संशोधन करना होगा।
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