उरी अटैक के बाद भारत ने इशारों में पाकिस्तान से 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि जारी रखने पर सवाल उठाए हैं। इस पर पाकिस्तानी मीडिया चिंतित नजर आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक बड़े अधिकारी ने कहा है कि पानी शांति का स्रोत होना चाहिए, टकराव का नहीं। भारत ने कहा है कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए आपस में ‘विश्वास और सहयोग’ महत्वपूर्ण है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने गुरुवार को कहा था कि यह एकतरफा नहीं हो सकता। इससे पहले भी कई बार भारत-पाक में तनाव होने पर संधि को खत्म करने की मांग उठी। रिपोर्ट्स हैं कि 1948 में एक बार भारत ने पाकिस्तान का पानी बंद भी कर दिया था, लेकिन उसे तुरंत खोलना पड़ा था।
संधि का इतिहास
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर दस्तखत किए थे। संधि के तहत छह नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं। तीन पूर्वी नदियों (रावी, व्यास और सतलज) के पानी पर भारत का पूरा हक दिया गया। बाकी तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बिना बाधा पाकिस्तान को देना था। भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन संधि में तय मानकों के मुताबिक। इनका करीब 20 फीसदी हिस्सा भारत के लिए है। संधि पर अमल के लिए सिंधु आयोग बना, जिसमें दोनों देशों के कमिश्नर हैं। वे हर छह महीने में मिलते हैं और विवाद निपटाते हैं।
संधि खत्म करने की दलीलें
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ दबाव बनाने के लिए इस संधि का इस्तेमाल करता रहा है। वह बगलीहार और किशनगंगा के मामले में इंटरनैशनल फोरम में जा चुका है। वह जम्मू-कश्मीर में विकास के प्रॉजेक्टों को रोकने के लिए इस संधि का इस्तेमाल करता है। वह चाहता है कि विकास न होने से वहां असंतोष भड़के। जम्मू-कश्मीर में भी संधि को खत्म करने की मांग होती है।
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