अभिराम सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दतार ने कानून की इस धारा का जिक्र करते हुए कहा कि भ्रष्ट क्रियाकलाप केवल तब साबित हो सकते है जब ‘या तो उम्मीदवार या उनका एजेंट’ धर्म के नाम पर वोट मांगे।
मुंबई की सांताक्रूज सीट से भाजपा की टिकट पर 1990 में सिंह का विधायक के रूप में निर्वाचन हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। उन्होंने पीठ से कहा कि अगर कोई अन्य व्यक्ति जैसे कि इस मामले में दिवंगत बाल ठाकरे और दिवंगत प्रमोद महाजन इस कानून में दिए गए इन आधारों पर वोट मांगते हैं तो उम्मीदवार की ‘रजामंदी’ ली जानी चाहिए।
पीठ में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए सोब्दे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव शामिल हैं।
पीठ ने एक काल्पनिक सवाल उठाया और पूछा कि क्या एक ‘सिख ग्रंथी’ किसी खास हिन्दू उम्मीदवार के लिए वोट मांग सकता है, क्या यह कहा जा सकता है कि यह अपील संबंधित प्रावधान से उलझती है।
दीवान ने जवाब दिया कि कानून के इस प्रावधान के तहत संभवतः यह ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि प्रावधान में प्रयुक्त ‘उनका धर्म’ शब्द से मतलब उम्मीदवार के धर्म से है, वोट मांगने वाले धार्मिक नेता के धर्म से नहीं।
इस बीच, तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं तीस्ता सीतलवाड़, शामसुल इस्लाम और दिलीप मंडल ने ‘राजनीति से धर्म को अलग करने’ की मांग को लेकर वर्तमान सुनवाई में हस्तक्षेप के लिए आवेदन दायर किया।































































