देश की सबसे बड़ी अदालत ने धर्म और राजनीति को मिलाना संविधान की भावना के खिलाफ बताया। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि संवैधानिक योजना का सार यही है कि राजनीति और धर्म अलग अलग रहें।
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की बेंच ने पूछा कि जो व्यक्ति न तो खुद चुनाव लड़ा और न ही विजयी उम्मीदवार बना, उसके खिलाफ कैसे जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत कथित रूप से भ्रष्ट क्रियाकलाप अपनाने का मामला चल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें देखना होगा कि क्या ये व्याख्या संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के अनुरूप होगी। क्या धर्म को चुनाव का हथियार बनाने की इजाजत दी जा सकती है। आपको बता दें कि इस मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।
कोर्ट इस कानून की धारा 123 (3) के ‘दायरे’’की जांच कर रहा है जो ‘भ्रष्ट क्रियाकलापों’ वाली चुनावी कदाचार से संबंधित है।
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