बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश दिया कि देश भर में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान को अनिवार्य रूप से बजाना होगा और राष्ट्रगान बजाने के दौरान सिनेमाघरों में स्क्रीन पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज भी दिखाना अनिवार्य होगा। लेकिन केरल का एक परिवार जो 1985 में राष्ट्रगान ना गाने के अपने फैसले पर टिका रहा और अपनी इस लड़ाई को आखिर में सुप्रीम कोर्ट में जीती।
जनसत्ता की खबर के अनुसार, केरल का वह परिवार जो 1985 में राष्ट्रगान ना गाने के अपने फैसले पर टिका रहा और आखिर में सुप्रीम कोर्ट में केस जीता भी उसने सिनेमा में राष्ट्रगान के जरूरी होने पर बात की। परिवार के मुखिया वी जे इमेनुल ने कहा कि उन्हें उससे कोई परेशानी नहीं है। इमेनुल ने कहा, ‘हम लोग राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होते ही हैं। हमें इससे कोई परेशानी नहीं है। वैसे भी तब ही तो गाना है जब सिनेमा हॉल में जाएंगे।’ वी जे इमेनुल कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। उनके सात बच्चे हैं। उनमें से तीन 1985 में कोट्टयम जिले के एनएसएस हाई स्कूल में पढ़ते थे। जो कि पाला में उनके गांव से चार किलोमीटर दूर था। वह स्कूल एक हिंदू संगठन द्वारा चलाया जाता था। उनके जो बच्चे उस स्कूल में पढ़ते थे उनका नाम बीजू इमानुल, बीनू और बिंदू था। तब बीजू 15 के, बीनू 14 साल और बिंदू 10 साल कीं थीं। तीनों को स्कूल ने राष्ट्रगान ना गाने की वजह से सस्पेंड कर दिया था। वे बच्चे अंत में केस जीत तो गए लेकिन उसके बाद सिर्फ एक दिन स्कूल गए। उन्होंने आगे पढ़ाई ना करने का फैसला कर लिया था।
दरअसल इमेनुल का परिवार Jehowah’s Witnesses (ईसाई धर्म) को मानता था और गॉड के अलावा किसी के प्रार्थना करने को तैयार नहीं था। स्कूल में उन तीनों के अलावा 9 और बच्चे इसाई धर्म को मानने वाले थे और वह भी राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े तो होते थे लेकिन उसे गाते नहीं थे। इसपर स्कूल में कुछ ही दिनों के अंदर बवाल को गया। बात बाहर तक पहुंच गई थी। 25 जुलाई 1985 को तीनों बच्चों और बाकी 9 को भी स्कूल से निकाल दिया गया। बवाल इतना बढ़ गया कि कांग्रेस के विधायक वीसी कबीर ने उसे राज्य की विधान सभा में भी उठा दिया था। उसके बाद शिक्षा मंत्री टीएम जैकब ने भी शिकायत की। फिर यूडीएफ की राज्य सरकार ने एक सिंगल मेंबर की जांच कमेटी बना दी। कमेटी में यह तो साबित नहीं हो पाया कि बच्चों ने राष्ट्रगान का अपमान किया है लेकिन कहा गया कि तीनों को लिखित में देना होगा कि वे आगे से राष्ट्रगान गाएंगे।
इमेनुल उस पर राजी नहीं थे। वह हाई कोर्ट गए। लेकिन वहां पर दो बार उनकी अर्जी ठुकरा दी गई। अंत में वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 1986 में एपेक्स कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय सुनाया और वह Bijoe Emmanuel v/s State of Kerala, 1986 जीत गए। कोर्ट ने कहा, ‘इस वक्त हम कह सकते हैं कि ऐसा कहीं लिखा नहीं है कि राष्ट्रगान बजने के दौरान उसे गाना जरूरी है। अगर कोई उसके सम्मान में खड़ा हो जाता है तो उतना बहुत है।’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बच्चों को फिर से स्कूल में ले भी लिया गया। लेकिन फिर किसी भी बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं किया। वह बस एक दिन स्कूल गए और फिर कभी स्कूल नहीं गए। इमेनुल ने भी उन्हें कभी दोबारा स्कूल भेजने के बारे में नहीं सोचा। उनका मानना था कि बच्चे को इंग्लिश और मलयालम के साथ-साथ बेसिक नॉलेज होनी चाहिए वही काफी है।
गौरतलब है कि अब इमानुल दादा बन गए हैं। उनके आठ पोता-पोती हैं जो कि अलग-अलग स्कूल में जाते हैं लेकिन उनमें से कोई भी राष्ट्रगान नहीं गाता। इमानुल ने बताया कि उन्होंने एडमिशन से पहले ही स्कूल प्रशासन को सारी पुरानी बातें और कोर्ट का ऑर्डर दिखा दिए थे जिससे अबतक कोई परेशानी नहीं हुई है।