मरीजों को जबरदस्ती एंटीबायोटिक्स देने वाले डॉक्टरों की अब खैर नहीं, सरकार ने उठाया ये ठोस कदम

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आज से तकरीबन 86 साल पहले महान वैज्ञानिक एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने दुनिया को पेनिसिलीन नामक एंटीबायोटिक की खोज का तोहफा देकर चिकित्सीय क्षेत्र में एक चमत्कारी काम किया था। पेनिसिलिन और एंथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक्स, जो एक समय चमत्कारिक दवा मानी जाती थी, उनके ज्यादा प्रयोग की वजह से 1950 के दशक के बाद लोगों के शरीर में इनके प्रतिरोधक तत्व उभरने शुरू हो गये है। मौजूदा समय में एंटीबायोटिक्स का अंधाधुंध इस्तेमाल होने लगा है। आम इंफेक्शन से पीड़ित मरीजों के इलाज में इसका बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि बेहद खतरनाक है।

शोध के मुताबिक मरीजों के विश्‍वास के विपरीत एंटीबायोटिक्स का अत्याधिक और अनावश्यक प्रयोग एलर्जी और संक्रमण का खतरे को बढ़ा देता है। अनुपयुक्त एंटीबायोटिक उपचार और एंटीबायोटिक्स का ज्यादा प्रयोग प्रतिरोधी जीवाणुओं के उभरने का एक मुख्य कारक है। समस्या तब और जटिल हो जाती है, जब व्यक्तिचिकित्सकीय निर्देशों के बिना एंटीबायोटिक्स  लेना शुरू कर देता  है। कृषि में एंटीबायोटिक का गैर चिकित्सकीय उपयोग होता है। एंटीबायोटिक दवाओं में बार-बार ये निर्देश दिये जाते हैं कि कहां इनकी जरूरत नहीं हैं, या उपयोग गलत है या दी गई एंटीबायोटिक मामूली असर वाला है।

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भारत जैसे विकासशील देशों में, बदलती जीवन शैली दवाओं के आकस्मिक और लापरवाह उपयोग करने के लिए ज़िम्मेदार है। यहां एंटीबायोटिक दवाओं के प्रसार के पीछे का कारण बढ़ती आय और सामर्थ्य हैं। डॉक्टर के पर्चे के बिना दवाई की उपलब्धता, स्वतंत्र रूप चिकित्सकों का एंटीबायोटिक दवाओं का निजी हित के कारण लिखना और साफ-सफाई और टीकाकरण की कमी से इन्फेक्शन का बार-बार होना। भारत में बैक्टीरियल डिजीज यानि बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियां तेजी से बढ़ रही है जिनके रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग हो रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में एंटीबायोटिक्स का उपयोग इतनी तेजी से बढ़ा है, कि उसके दुष्परिणाम दवाओं की गुणवत्तत्ता पर हावी हो रहें हैं। कई तरह की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि एंटीबायोटिक्स का अनावश्यक उपयोग हो रहा है, बिना विवेक के मरीजों को एंटीबायोटिक्स दवायें दी जा रही हैं इस वजह से मरीज को साइड इफेक्ट्स का सामना तो करना ही पड़ता है साथ ही इन दवाओं के प्रति विषाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता (ड्रग रेसिस्टेंस) भी विकसित हो रही है। इन दवाओं के लगातार सेवन से जीवाणु अब इतने ताकतवर हो गये हैं कि उन पर कई एंटीबायोटिक दवाओं का असर होना बंद हो गया है। मामले की गंभीरता को समझते हुए भारत में भी बिना जाने समझे एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को रोकने की कवायद में तेजी लाने की ज़रूरत है।

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