भारत और दुनिया के कई देश एंटीबायोटिक्स के गलत और गैर जरूरी इस्तेमाल से परेशान हैं। इस पर रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर अलग-अलग तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने सरकारी अस्पतालों में दवाओं के प्रिस्क्रिप्शन का ऑडिट कराने की योजना तैयार की है।
नड्डा ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने एंटीबायोटिक्स के गलत और गैर जरूरी इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए कई तरह की पहल की है। 22 फरवरी को कृषि, पशु-पालन विभाग, वन और पर्यावरण मंत्रालय के अलावा दवा उद्योग के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय ने अभियान चलाने का निर्णय लिया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि एंटीबायोटिक्स पर रोकथाम और इसके कम होते प्रभाव को दूर करने के लिए कई मंत्रालयों को मिलकर काम करना होगा।
इसे लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाने की भी तैयारी की जा रही है। मंत्रालय के सचिव सीके मिश्रा ने कहा कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर किस तरह की और कितनी एंटीबायोटिक्स लिखते हैं इसका भी ऑडिट किया जाएगा। फिलहाल यह व्यवस्था सरकारी अस्पतालों तक ही सीमित होगी। लेकिन आने वाले वक्त में इसे प्राइवेट डॉक्टर्स पर भी अप्लाई किया जा सकता है, ऐसे में उन डॉक्टरों पर गाज गिरनी तय है जो मरीजों को गाहे-बगाहे एंटीबायोटिक्स के दलदल में धकेल रहे हैं, वो भी अपने मुनाफे के लिए।
जाहिर है कि प्राइवेट डॉक्टरों को दवाई बनाने वाली कंपनियां उनके ब्रांड की दवा लिखने पर मोटा कमीशन देती हैं। ऐसे में कुछ डॉक्टर भी अपनी कमाई के लिए मरीजों को जबरदस्ती एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं। भोलेभाले मरीज इन दवाओं को खाते हैं और अंजाने में अपने शरीर को खोखला कर लेते हैं। पर अब इस धीमे ज़हर के जबरन इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए सरकार ने मिशन शुरू कर दिया है। सबसे पहले इसकी शुरूआत देश के सरकारी अस्पतालों से हो रही है।
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