यह पूरा मामला साल 2001 का है। बताया जाता है कि मकतुम हुसैन ने अपने कमांडिंग अफसर यानी सीओ से दाढ़ी बढ़ाने को लेकर स्वीकृति मांगी थी। इसके लिए मकतुम ने ‘धार्मिक आधार’ पर बल दिया था। सीओ ने शुरुआत में तो इसकी इजाजत दे दी, लेकिन बाद में उन्हें यह अहसास हुआ कि नियमों के मुताबिक सिर्फ सिख सैनिकों को ही दाढ़ी बढ़ाने की इजाजत है।
नियम के तहत सीओ ने बाद में मकतुम हुसैन को दी गई अनुमति वापस ले ली। सैनिक ने इसे ‘भेदभाव’ मानते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट में नियम के खिलाफ अपील की। इसके बाद भी जब मकतुम ने दाढ़ी नहीं काटी तो उनका तबादला पुणे के कमांड अस्पताल में कर दिया गया। वहां नए सीओ ने भी मकतुम से दाढ़ी काटने को कहा। लेकिन वह अपनी जिद पर अड़े रहे। इसके बाद मकतुम को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया। इन सबके बाद भी जब मकतुम दाढ़ी नहीं काटने की अपनी जिद पर अड़े रहे तो निर्देशों की अवहेलना करने के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें सेवा से हटा दिया गया।