इस साल अमरनाथ यात्रा के बीच बुरहान वानी के मौत की पहली बरसी पड़ने की वजह से सुरक्षा बलों की चिंताएं बढ़ गई हैं। दरअसल कश्मीर घाटी में कुछ आतंकवादियों के मौत की बरसी का वक्त हमेशा से संवेदनशील रहा है। इस दौरान विरोध प्रदर्शन चरम पर पहुंच जाता है। अब तक आतंकी अफजल गुरु और मकबूल बट के मौत की बरसी 9 फरवरी और 11 फरवरी सुरक्षा बलों के लिए चुनौती रही हैं तो इस बार 8 जुलाई की तारीख भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। पिछले साल इसी तारीख को हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी मारा गया था। सुरक्षा बलों को डर है कि जुलाई में अमरनाथ यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शनों की वजह से बाधा पड़ सकती है।
इस साल 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होगी जो 40 दिनों तक चलेगी। हिजबुल कमांडर सबजार बट के मारे जाने के करीब एक महीने बाद शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा सुरक्षा बलों के लिए निश्चित तौर पर एक बड़ी चुनौती है। बट के मारे जाने के बाद घाटी में हालात पहले ही तनावपूर्ण हैं वहीं अमरनाथ यात्रा के दौरान ही बुरहान वानी के मौत की पहली बरसी का यात्रा पर बुरा असर पड़ सकता है। पिछले साल सुरक्षा बलो के साथ मुठभेड़ में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद अमरनाथ यात्रा बुरी तरह प्रभावित हुई थी और कई यात्रियों को मुश्किल हालात में घिरना पड़ा था। तीर्थयात्रियों को अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में श्रीनगर से सुरक्षित निकालकर जम्मू लाना पड़ा था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘यात्रा प्रभावित न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए हम इस साल कुछ नई रणनीतियां अपनाएंगे।’ अधिकारी ने कहा, ‘हमें अपनी आंख और कान को खुला रखना होगा।’
इस साल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में करीब 27 हजार जवान तैनात किए जाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय भी घाटी में अशांति के माहौल में अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा पर संभावित खतरों से वाकिफ है। गृह मंत्रालय में सलाहकार अशोक प्रसाद ने पिछले हफ्ते कहा था, ‘यात्रा पर आतंकवादियों के साथ-साथ पत्थरबाजों का भी बराबर खतरा है। इन सभी खतरों को ध्यान में रखा जा रहा है।’