राजनीतिक दलों की ओर से पुराने नोट अपने खाते में जमा करने की ‘छूट’ की खबर गरमाने के बाद मोदी सरकार बैकफ़ुट पर नज़र आ रही है। इस बारे में किसी तरह की सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
शुक्रवार को मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि पुराने नोटों में लिए गए 20,000 से कम के चंदे का हिसाब राजनीतिक दलों से नहीं मांगा जाएगा। हालांकि शनिवार को सरकार की तरफ इस सिलसिले में सफाई भी दी गई।
राजनीतिक दलों को चंदा अपने बैंक खाते में जमा कराने से जुड़ी घोषणा की 10 खास बातें।
1- वित्त मंत्री अरुण जेटली का दावा था कि नोटबंदी के बाद राजनीतिक दलों को किसी तरह की छूट नहीं दी गई है।
2- जेटली ने बताया कि राजनीतिक पार्टियों से जुड़े टैक्स कानून पिछले 15-20 सालों से वही हैं।
3- जेटली ने साफ किया कि नोटबंदी के बाद कोई राजनीतिक दल पुराने नोटों में चंदा ले नहीं सकता है।
4- हालांकि 8 नवंबर से पहले लिए गए चंदे को राजनीतिक पार्टियां भी आम लोगों की तरह ही बैंक में जमा कर सकती हैं।
5- राजनीतिक पार्टियां को 20,000 रुपये से ज्यादा चंदा देने वाले लोगों का पूरा ब्योरा रखना होता है और अब भी रखना होगा।
6- लेकिन 20,000 रुपये से कम के चंदे पर हिसाब रखने की ऐसी कोई बाध्यता राजनीतिक दलों पर नहीं है।
7- वित्त मंत्रालय ने बयान जारी किया है कि इनकम टैक्स ऐक्ट के तहत छूट केवल रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को हासिल है।
8- सरकार का कहना है कि इस छूट को हासिल करने के लिए पार्टियों को अपना बही-खाता दुरुस्त रखना होगा।
9- राजनीतिक दल आरटीआई कानून के तहत चंदे का हिसाब देने से इनकार करते रहे हैं।
10- चुनाव आयोग के सामने 2014-15 के वित्त वर्ष में BJP ने अपने खाते में 970 करोड़ तो कांग्रेस ने 700 करोड़ रुपये दिखाए थे।