नई दिल्ली : मंगलवार को प्रधानमंत्री की तरफ से नोटबंदी की घोषणा के बाद से देश में जिस तरह की अफरातफरी मची है, उसमें देश के कई हिस्सों से आने वाली एक खबर दबकर रह गई है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु से पुराने 500 और 1000 के नोटों को नदी में बहाने या उसके टुकड़ों को काटकर कूड़ेदान में फेंकने या जलाने की खबरें आ रही हैं। पुराने नोटों के साथ किया गया ऐसा कोई भी काम सरकार को फायदे पहुंचाएगा। असल में प्रचलन में 14.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के पुराने 500 व 1000 के नोटों में से जितनी नकदी सरकार के पास नहीं आएगी, उससे सरकार को फायदा ही फायदा होगा।
उद्योग चैंबर सीआइआइ का आकलन है कि देश में 500 व 1000 के नोटों के रूप में 14 लाख करोड़ रुपये की राशि पड़ी हुई है। अगर यह मान लिया जाए कि इनमें से 20 फीसद भी काला धन है और वह सरकार के पास नहीं लौटने वाला है। सीधे तौर पर इसके बराबर यानी लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की राशि सरकार का फायदा है। आरबीआइ की तरफ से जारी हर नोट सरकार का दायित्व (लायबिलिटी) है। यानी अगर तीन लाख करोड़ रुपये की राशि निर्धारित अवधि के बाद भी नहीं आती है तो सरकार उसके दायित्व से आजाद है। इसके बराबर राशि के नए नोट छापकर सरकार उनका इस्तेमाल ढांचागत या समाजिक विकास में कर सकती है। यही वजह है कि कई राजनीतिक दल नोट बंदी के सरकारी फैसले को भले ही जन विरोधी बताएं, मगर देश का उद्योग जगत और अर्थविद इसे एक मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं।
अगले पेज पर पढ़िए- फैसले के दुष्परिणाम