‘हमेशा क्रूरता नहीं होता पति का विवाहेतर संबंध’

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प्रतिकात्म फोटो।

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पति के विवाहेतर संबंधों को लेकर पत्नी के संदेह को हमेशा मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता है। उसके अनुसार, यह तलाक का आधार तो बन सकता है, लेकिन इस कारण आत्महत्या के लिए प्रेरित करने संबंधी प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है।

ये टिप्पणियां उस मामले में की गई थीं, जिसमें एक महिला ने अपने पति के कथित विवाहेतर संबंधों की वजह से आत्महत्या की थी और दूसरी महिला ने अपमान की वजह से अपनी जान दी। यह विपत्ति यहीं समाप्त नहीं हुई। बाद में व्यक्ति की कथित प्रेमिका की मां और भाई ने भी आत्महत्या कर ली।

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शीर्ष अदालत उस व्यक्ति द्वारा अपनी दोषसिद्धि और चार साल के कारावास की सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। उस व्यक्ति को अपनी पत्नी के उत्पीड़न और मानसिक क्रूरता के लिए दोषी ठहराया गया था। इसकी वजह से उसकी पत्नी ने आत्महत्या की।

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शीर्ष अदालत ने उस व्यक्ति को यह कहते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया कि आईपीसी की धारा 306 समेत ये प्रावधान कर्नाटक हाई कोर्ट ने जोड़े और आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मुकदमा गलत था।

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न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने कहा कि विवाहेतर संबंध आईपीसी की धारा 498 ए (पति या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा विवाहित महिला का उत्पीड़न) के दायरे में नहीं आएगा। यह अवैध या अनैतिक कृत्य हो सकता है, लेकिन अन्य घटक भी होने चाहिए ताकि यह अपराध के दायरे में आए।