कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक को लेकर इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चले मुकदमे में भारत के सीनियर अधिवक्ता हरीश साल्वे और पाक के खावर कुरैशी के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दिया। इस मामले में अदालत ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर कोई फैसला आने तक रोक लगाने का आदेश दिया। इस सुनवाई में भारत के हीरो रहे हरीश साल्वे ने पाकिस्तानी वकील खावर कुरैशी को अपने तर्कों के आगे बेदम कर दिया। लेकिन, दोनों देशों के नामी वकीलों के बीच यह पहला मुकाबला नहीं था। दोनों के बीच करीब 15 साल पुरानी प्रतिद्वंद्विता भी थी, जिसमें इस बार साल्वे ने बाजी मार ली।
आईसीजे में कुरैशी के सामने केस लड़ने के लिए साल्वे ने भारत सरकार से महज 1 रुपये की टोकन फीस ली। लेकिन, कुरैशी को परास्त कर उन्होंने भारत को जिताने के साथ ही कुरैशी से पुराना हिसाब भी चुकता कर लिया। 15 साल पहले दाभोल पावर प्रॉजेक्ट बंद करने को लेकर अमेरिकी कंपनी एनरॉन भारत के खिलाफ इंटरनैशनल ट्राइब्यूनल में चली गई थी। भारत के लिए लाखों डॉलर की रकम दांव पर थी। नवंबर, 2002 में भारत के सॉलिसिटर जनरल का पद छोड़ने वाले साल्वे को आर्बिट्रेशन ट्राइब्यूनल में भारत का वकील तय किया गया।
इसके बाद 2004 में यूपीए सरकार सत्ता में आई। सरकार ने अटॉर्नी जनरल मिलन बनर्जी के नेतृत्व में कानूनी अधिकारियों की नई टीम तैयार की। एनरॉन के खिलाफ बड़े मुकदमे में सरकार ने अपना पक्ष रखने के लिए फॉक्स और मंडल लॉ फर्म को चुना। केंद्र सरकार के सूत्रों ने कहा कि साल्वे से पूछा गया था कि क्या वह मामले में भारत के पक्षकार वकील बने रहेंगे? इस पर साल्वे ने सरकार को बताया कि वह 1 लाख रुपये प्रतिदिन की रियायती फीस पर इस मुकदमे को लड़ते रहेंगे।
हालांकि, फैसला बदल दिया गया। फॉक्स और मंडल लॉ फर्म ने खावर कुरैशी को हायर करने की सूचना दी। इस मामले में भारत की दोतरफा हार हुई। एनरॉन से भी केस में हार का सामना करना पड़ा और कुरैशी को मुकदमे की फीस के तौर पर बड़ी रकम देनी पड़ी।