30 जनवरी 1948 की शाम को जब वह एक प्रार्थना सभा में भाग लेने जा रहे थे, तब एक युवा हिन्दू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। नाथूराम गोडसे की बंदूक से निकली तीन गोलियां बापू के शरीर को छलनी करती गईं। पहली गोली लगते ही बापू का कदम बढ़ाने को उठा पैर थम गया, लेकिन वे खड़े रहे।
इसे भी पढ़िए : भागवत के हिंदू जनसंख्या वाले बयान पर विवाद, कांग्रेस ने कहा- भागवत धर्म की ही खाते हैं

दूसरी गोली लगी और बापू का सफेद वस्त्र रक्तरंजित हो गया। उनके मुंह से शब्द निकला हे राम। तीसरी गोली चलते ही बापू का शरीर ढेर होकर धरती पर गिर गया, चश्मा निकल गया और पैर से चप्पल निकल गई। इन तीन गोलियों ने 200 वर्षों तक भारत को गुलामी की जंजीर में जकड़े रखने वाले अंग्रेजों को अहिंसक आंदोलन के जरिए झुका देने वाले महात्मा गांधी को हमेशा के लिए खामोश कर दिया।
आगे पढ़ें- मजबूरी नहीं, मजबूती का नाम है ‘महात्मा गांधी’































































