केंद्र सरकार ने पिछले ढाई साल के कार्यकाल में पीएम मोदी पर केंद्रित विज्ञापनों पर 1100 करोड़ रुपए ख़र्च किए हैं। एक आरटीआई में इस बात खुलासा हुआ है जिसके बाद से सरकार को लेकर कई सवाल खड़े हो गये है।
आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर सिंह के सवालों पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यह जानकारी दी है।
आरटीआई में मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार ने ब्रॉडकास्ट, कम्युनिटी रेडियो, डिजिटल सिनेमा, इंटरनेट, दूरदर्शन, प्रोडक्शन, एसएमएस, टेलीकास्ट पर अबतक करीब 11 अरब यानी 1100 करोड़ रुपये खर्च किए। यहां तक कि सिर्फ एसएमएस पर ही डीएवीपी ने 17 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिया, जो कि अंदाजन 2 लाख रुपए प्रतिदिन है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 1 जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक लगभग 448 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 1 अप्रैल, 2015 से 31 मार्च, 2016 तक 542 करोड़ रुपये और 1 अप्रैल, 2016 से 31 अगस्त, 2016 तक 120 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इस तरह कुल 1111 करोड़ 78 लाख रुपये से अधिक का सरकारी धन मोदी सरकार के प्रचार पर खर्च हो चुका है।
उधर विपक्षी पार्टियां सरकार पर प्रचार-प्रसार को लेकर कई बार आरोप लगाती रही हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार काम से ज्यादा काम का ढिंढोरा पीटती है।
पत्रिका की खबर के मुताबिक, आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर सिंह ने इस पर कहा कि सुना करते थे कि मोदी चाय के पैसे भी खुद दिया करते थे। ऐसे में विज्ञापन को लेकर सवाल उठने पर आरटीआई लगाई थी। अंदाजा था मोदी के विज्ञापनों पर 5 से 10 करोड़ का खर्च किया होगा। लेकिन ढाई साल में 1100 करोड़ खर्च का पता लगने के बाद निराशा महसूस हुई। साथ ही इसकी तुलना उन्होंने अमेरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से की और कहा कि वहां सरकार के चुनाव प्रचार में 800 करोड़ रूपये खर्च हुए है। जबकि हमारे देश में एक केंद्र सरकार इतना पैसा खर्च कर दिया ये बहुत ही निंदनीय है। अगर इन पैसों को जनता के काम में लगाया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।