केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने बुधवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का 9वां वाषिर्क व्याख्यान देते हुए नकवी ने कहा कि भारत में अल्पसंख्यक ‘कभी-कभी खुद को द्वितीय श्रेणी के नागरिक सा महसूस करने लगते हैं।’ और बयान के कुछ देर बाद उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उनका आशय वोट-बैंक की राजनीति से था।
नकवी ने कहा, ‘अल्पसंख्यक अधिकारों के मामले में भारत एक आदर्श देश है- आप अपने पासपड़ोस में देखिए और आपको पता चल जाएगा, हालांकि हमारे संविधान में समान अधिकार की गारंटी दी गई है लेकिन उस समानता के अहसास में कई बार कमी महसूस होती है, कभी-कभी हमें दोयम दर्जे के नागरिक जैसा लगता है। असली मुद्दे अक्सर दब जाते हैं।’ आगे नकवी ने कहा कि उनका बयान अल्पसंख्यकों की सामाजिक स्थिति पर टिप्पणी नहीं है।
हालांकि कई रिपोर्टों, सच्चर समिति और कुंडू समिति सहित में ये सामने आया है कि मुसलमानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने बहुत कम काम किया है। अपने करीब ढाई साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के प्रति अपने रुख को लेकर आलोचना की शिकार होती रही है। सरकार पर असहिष्णुता, घर वापसी, बीफ और गोहत्या जैसे मुद्दों को लेकर अल्पसंख्यक विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं।
नकवी ने कहा, ‘हम दंगा न होने देने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। भारतीय मुसलमानों को किसी से देशभक्ति का सबूत नहीं चाहिए, उन्हीं की वजह से कट्टरवादी संगठन भारत में जगह नहीं बना पाए हैं।’