27 साल पहले कश्मीर में जो हुआ था वो आज भी हर हिंदुस्तानी को मुंहजुबानी याद है। आज भी हर हिंदुस्तानी 27 साल पहले कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म को याद करके सिहर उठता है। आज भी अनुपम खेर सरीखे सैकड़ों हजारों लाखों लोग कश्मीर से हिंदुओं को काफिर कह कर भगाए जाने की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियां सुनाते हैं। लेकिन जरा रूकिये।जरा पूर्वोत्तर के हालात पर पर निगाह डालिए, यकीन मानिए कश्मीर से ज्यादा सिहरन होगी। कश्मीर एक मसला है इसलिए जेहन में जिंदा रखा गया है, पूर्वोत्तर अभी तक मसला नहीं बना है, इसलिए आम हिन्दुस्तानी यहां को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। लेकिन जब आप जानेंगे कि पूर्वोत्तर में पेट्रोल 250 रुपये/लीटर बिक रहा है तो आपको चिंतित होना चाहिए क्योंकि वो भी आप ही के देश का हिस्सा है। जब आप जानेंगे कि गैस, चावल, आटा, दाल वहां इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं है जितनी आसानी से आप देश के बाकी हिस्सों में खरीद सकते हैं तो निश्चित रूप से आपको चिंतित होना चाहिए क्योंकि कश्मीर की तरह वो भी आप ही के लोग हैं। जब आपको ये सच्चाई पता चलेगी कि वहां के स्कूलों और कॉलेजों के हालात कश्मीर से भी बद्तर हैं तो आपके माथे पर पसीना आना ही चाहिए।
ये बातें आपको डराने के लिए नहीं बताई जा रही हैं। लेकिन जरा सोचिए, आखिर क्या वजह है हिन्दुस्तान के दो हिस्सों – कश्मीर और पूर्वोत्तर – में से पूर्वोत्तर को कोई तवज्जों नहीं दी जाती। क्यों कश्मीर में एक पत्थर भी फेंका जाता है जो देश के सभी अखबारों में सुर्खियां बनती हैं और पूर्वोत्तर में स्थानीय हिंसा में लगभग 100 गाड़ियां आग के हवाले कर दी जाती हैं लेकिन मीडिया इसे हेडलाइन बनाना तो दूर, ‘पेज 7 कॉलम 3 हेडलाइन 4’ भी नहीं बनाता।
जरा पूर्वोत्तर की स्थिति जान लीजिए। इस महीने की शुरूआत से ही नागालैंड के दो सबसे बड़े जिले कोहिमा और दीमापुर में इतनी अशांति और हिंसा का माहौल है कि वहां सेना तैनात करनी पड़ी।इसके अलावा नागालैंड के एक और शहर चुमोकेडिमा में कर्फ़्यू लगा हुआ है। लेकिन ये तो सिर्फ़ ट्रेलर है। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि राज्य में पिछले सोलह सालों से निकाय चुनाव नहीं कराए गए हैं। चुनाव के विरोध में नगा संगठनो ने बंद का आयोजन किया, जिसमें गोलीबारी हुई और दो युवक मारे गए। इसके बाद हिंसा और भी भड़क गई। लेकिन आप तक ये खबर नहीं पहुंची होगी।
कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक के तबियत खराब होने की खबर को भारतीय मीडिया ने प्रमुखता से जगह दी थी, लेकिन आप तक ये खबर भी नहीं पहुंची होगी कि मणिपुर को देश के अन्य भागों से जोड़ने वाले राजमार्गों को हिंसा के चलते बंद कर दिया गया है। आप ये भी नहीं जानते होंगे कि एक नवंबर (जी हां लगभग साढ़े तीन महीने पहले) स्थानीय संगठन UNC (यूनाइटेड नगा काउंसिल) ने जिस बंद का आह्वान किया था वो बंद आज तक बंद नहीं हुआ है।
आप ये भी नहीं जानते होंगे कि चारों तरफ़ से पहाडियों से घिरे हुए मणिपुर की राजधानी इंफाल तक सड़क मार्ग से जाने के लिए केवल दो सड़कें हैं- नेशन हाईवे- 2 और 37। इसके अलावा म्यामांर के बॉर्डर से इम्फाल तक जाने वाली सड़क की लंबाई करीब 100 किलोमीटर है और इसकी हालत बेहद खराब है।
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि कश्मीर से ज्यादा अलगाववाद और कट्टरता आज पूर्वोत्तर में पनप रही है । उस पूर्वोत्तर में जहां अगर शांति होती तो वो शिक्षा और टूरिज्म का हब होता। आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि अकेले मणिपुर में ही 17 से अधिक सेप्रेटिस्ट्स यूनियन्स (अलगाववादी संगठन) एक्टिव हैं. जिनमें से प्रमुख संगठन ने अपना नाम चीन की सेना के नाम पर ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ रखा है। अगर ये हाल कश्मीर का होता और वहां किसी अलगाववादी संगठन ने पाकिस्तान स्थित किसी आतंकी संगठन के नाम पर अपना नाम रखा होता तो भारतीय मीडिया में बहसों का ना खत्म होने वाला दौर शुरू हो गया होता।
पांच राज्यों में एक साथ चुनाव हो रहे हैं – यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोआ और मणिपुर। अपने घर आने वाले अखबारों और टीवी चैनलों पर जरा रिसर्च करके देख लीजिए कि मणिपुर चुनावों से जुड़ी कितनी खबरें आपको बताई गईं। चलिए मीडिया को छोड़ दीजिए, क्या किसी भी राजनीतिक दल में ये इच्छाशक्ति है कि पूर्वोत्तर के मामलों को मुद्दा बनाएं। शायद नहीं। क्योंकि वहां का समुदाय पूरे देश में बड़े वोट बैंक के रूप में नहीं फैला है। लेकिन अगर पूर्वोत्तर पर ध्यान ना दिया गया तो स्विटजरलैंड और सिंगापुर से भी खूबसूरत ये जमीन कश्मीर की ही तरह सबसे बड़े दुख का कारण बन जाएगी। पूर्वोत्तर के कश्मीर होने का इंतजार मत कीजिए। जागिए, अभी वक्त है। कहीं बहुत देर ना हो जाए।