इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सीबीआई की याचिका पर 6 मार्च की सुनवाई में शीर्ष अदालत ने इन नेताओं के खिलाफ लगे आरोप हटाने के आदेश का परीक्षण करने का विकल्प खुला रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने विध्वंस मामले की सुनवाई में देरी पर भी चिंता जताई थी। कोर्ट ने तब साफ कहा था कि पहली नजर में इन नेताओं को आरोपों से बरी करना ठीक नहीं लगता। यह कुछ अजीब है। सीबीआई को इस मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ समय पर सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करनी चाहिए थी। निचली अदालत ने तकनीकी आधार पर इन नेताओं को बरी किया था, जिस पर हाइकोर्ट ने भी मुहर लगाई थी।
आडवाणी और दूसरे नेताओं पर आरोप
दरअसल 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी तो अयोध्या के राम कथा कुंज में मंच पर बीजेपी नेता आडवाणी और कई और कथित तौर पर मौजूद थे। बाबरी विध्वंस केस में एक मामला इन नेताओं के खिलाफ जबकि दूसरा मामला उन लाखों कारसेवकों के खिलाफ है, जो घटना के वक्त विवादित ढांचे के आसपास मौजूद थे। सीबीआई ने आडवाणी और 20 अन्य के खिलाफ दो समुदायों के बीच कटुता बढ़ाने, लोगों को भड़काने, अफवाह फैलाने, शांति व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के आरोपों से जुड़ी धाराओं में मामला दर्ज किया था। बाद में आपराधिक साजिश की धारा 120बी को भी जोड़ा गया। हालांकि, स्पेशल कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया और इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।































































