सामना में प्रकाशित इस लेख में साथ ही सवाल किया, “यही सब देखना था तो देश की जनता को क्यों बैंकों के बाहर खड़ा किया। क्यों 100 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।” इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार की नोटबंदी एक खोखला योजना थी, जिसमें से कुछ साबित नहीं हुआ। बस लोगों को परेशानी हुई और देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
बीएमसी चुनावों में बीजेपी से अलग होकर लड़ रही शिवसेना ने कहा, नोटबंदी एक पानी का बुलबुला था, जो अब तीन महीने बाद फुट गया। इससे हमें खुशी नहीं, बल्कि दुख है कि इन तीन महीनों में केंद्र सरकार ने देश का यह हाल कर दिया। सवाल यह है कि क्या नोटबंदी के बुलबुले छोड़ने वालों को इस बात का पश्चाताप है। अगर है, तो उसके लिए वे क्या करेंगे। आम जनता को उन्हें इसका जवाब देना होगा।