34 सालों से रोजा रख रही है 85 साल की ये हिंदू महिला

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प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार

अहमदाबाद में 85 साल की बुजुर्ग हिंदू महिला पूरीबेन लेउवा पिछले 34 सालों से रमजान के महीने में रोजा रख रही हैं। पूरीबेन कहती हैं कि वो और उनके मुस्लिम दोस्त इस दौरान एक-दूसरे के विश्वास को बांटते हैं जिसे हम प्रेम कहते हैं। पूरीबेन कहती हैं कि उन्होंने जमालपुर के बाला पीर बाबा के यहां रमजान के दौरान रोजा रखने की मन्नत मांगी थी और तभी से लगातार वो रोजा रखती आ रही हैं। वहीं पति की मौत के बाद पूरीबैन अपने बेटियों के साथ घर से करीब 2.5 किलोमीटर दूर पास के ताजपुर मोमीनाबाद आ गईं। पूरीबेन कहती हैं, ‘पिछले दो सालों से मैं लगातार सारे रोज रख रही हूं। हालांकि अब मेरी तबियत ठीक नहीं रहती। इसलिए परिवार और डॉक्टर ने मुझे इस साल सिर्फ तीन रोजे 27, 28 और 29 तारीख के ही रखने की अनुमति दी। मगर मैंने हर दिन रोजे रखते रहने की बात कही।’ पूरीबेन कहती है कि साल 1982 में प्रोपर्टी को लेकर बेहनोई के साथ उनका विवाद चल रहा था। तब मैंने बाला पीर बाबा की दरगाह पर मन्नत मांगी कि अगर केस हमारे पक्ष में जाता है तो मैं पवित्र महीने रमजान में रोजे रखूंगी। उसके बाद हम एक ही साल में केस जीत गए। तब से ही मैं रोजे रख रही हूं।

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पूरीबेन कहती हैं कि साल 1969 के दंगों में उनका परिवार बहुत भयंकर परिस्थितियों में आ गया था। तब हमारे मुस्लिम पड़ोसियों ने ढाल बनकर हमारी सुरक्षा की। हिंसक भीड़ से हमारे परिवार की हिफाजत की। पूरीबेन बताती हैं, ‘मेरी छह बेटियां हैं, दंगों के दौरान मुस्लिमों पड़ोसियों ने इनमें से एक पर खरोंच तक नहीं आने दी। जब इलाके में करीब एक महीने तक कर्फ्यू लगा था तब मेरे पति और बच्चों को मुस्लिम पड़ोसियों ने ही एक महीने तक भोजन खिलाया था।’

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पूरीबेन की बेटी सरला लेउवा (58) कहती हैं कि जब पूरीबेन रमजान रखती हैं तब मोमीनाबाद की पूरी सोसायटी उनके घर खीर भेजती है। वहीं पूरीबेन की बड़ी बेटी मंजुला कहती हैं कि हमें याद है कि बचपन में मां ने हमें कभी भी मुस्लिमों को त्योहारों में शामिल होने से नहीं रोका। मंजुला आगे कहती हैं की ईद के दौरान उनका परिवार मुस्लिम पड़ोसियों की खाना बनाने में मदद करता है।

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