जी हां वाराणसी के महमूरगंज इलाके में मोतीझील हवेली के दरवाजे पर टंगा मगरमच्छ सबके लिए एक रहस्य है। यह हवेली बाबू मोतीचंद्र ने 1908 में बनवाई थी। 90 साल से 20 फीट लम्बा और 2 फीट चौड़ा मगरमच्छ का भूसा भरा स्टैचू यहां टंगा हुआ है। कहा जाता है कि कभी इस विशालकाय मगरमच्छ ने महल के पीछे स्थित झील में नहाने गई रानी को निगल लिया था। राजा ने मगरमच्छ को मारकर रानी को जिंदा निकाल लिया था। उसी समय राजा ने मगरमच्छ टंगवा दिया था।
लेकिन वहां के स्थायी निवासी अशोक कुमार ने बताया, ”ये 1920 की बात है। विशालकाय मगरमच्छ बाढ़ में बहता हुआ हमारे मूल गांव आजमगढ़ के अजमतगढ़ में मल्लाहों को दिखा। गांव में घुसने के खतरे से लोग इसे देख कर घबड़ा गए और पूरे गांव के लोगों ने मिलकर इसे मार दिया। कई टन का मगरमच्छ घंटों संघर्ष के बाद मरा। मारने के बाद उन लोगों ने सोचा कि अब इसका क्या किया जाए, तब उन्होंने मुखिया से राय-विचार करके फैसला किया की इसे बनारस के राजा
मोतीचंद्र को गांव की तरफ से उपहार दे दिया जाए, ”इसके बाद वे लोग मगरमच्छ बैलगाड़ी पर लादकर गांव से निकल पड़े। रास्ते में ब्रिटिश ऑफिसर और पब्लिक इतना बड़ा मगरमच्छ देखकर हैरान होते रहे। वहां से इसे लाने में तकरीबन 2 दिन लगा होगा।”
और उन्होंने कहा कि ”पिता जी बताया करते थे कि शुरू-शुरू में जब ये आया और राजा साहब ने इसे स्टैचू बनवाकर टांगा तो देखने वालो की भीड़ लगती थी। लोग दूर-दूर से इसे देखने आते थे।”