चैंपियंस ट्रॉफी आयोजन को लेकर उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, लेकिन विराट कोहली की टीम इस टूर्नामेंट में शिरकत करेगी या नहीं इसको लेकर चल रहा सस्पेंस ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा. जहां एक तरफ BCCI के कई अधिकारी इस टूर्नामेंट में नहीं खेलने का लगभग मन बना चुके हैं वहीं क्रिकेट संचालक समिति कतई नहीं चाहती है कि ऐसा फैसला लिया जाए, जिससे भारतीय क्रिकेट का नुकसान हो.
सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो BCCI आईसीसी पर दबाव बनाने के लिए टूर्नामेंट का प्रसारण करने वाली स्टारस्पोर्ट्स का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचक रही है. ऐसा माना जा रहा है कि स्टारस्पोर्ट्स ने बाकायदा लेटर लिखकर ये आश्वासन मांगा है कि इसमें भारतीय टीम की मौजूदगी को लेकर स्थित साफ की जाए. आपको बता दें कि भारत में होने वाले तमाम मैचों के प्रसारण के अधिकार भी स्टार के पास ही हैं और BCCI से उनका पेशवेर रिश्ता काफी गहरा है. लेकिन, स्टार की मुश्किल ये है कि कि अगर वो कोहली की टीम इंग्लैंड नहीं जाती है तो उन्हें भी भारी वित्तीय घाटा उठाना पड़ेगा.
पूरे मामले की नज़ाकत को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित क्रिकेट संचालक समिति के सर्वेसर्वा विनोद राय ने BCCI के तमाम संघों को एक ईमेल लिखकर आगाह किया है. अगर BCCI अपनी ज़िद पर अड़ी रही और उन्हें ऐसा लगता है कि बॉयकॉट का फैसला ग़लत है तो वो सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश लेने में नहीं हिचकेंगे. इस बात ने BCCI के कई अधिकारियों को बैकफुट पर धकेल दिया है.
बिग थ्री के राजस्व फॉर्मूले और आईसीसी के नए प्रस्ताव से भारत को 8 साल में करीब 800 करोड़ का नुकसान हो सकता है. यानि हर साल 100 करोड़. ये घाटा BCCI सिर्फ 3 अतिरिक्त वन-डे या टी20 मैचों का आयजन करके पूरा सकता है तो ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि आखिर BCCI इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का मुद्दा क्यों बना रहा है? हैरान करने वाली बात ये भी है कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर BCCI के अधिकारियों ने ना तो कप्तचान कोहली और ना ही सीनियर खिलाड़ी धोनी से सलाह या चर्चा करना भी उचित समझा है. आखिरकार, चैंपियंस ट्रॉफी में नहीं खेलने से सबसे ज़्यादा नुकसान तो खिलाड़ियों को ही होगा.
अगर चैम्पियंस ट्रॉफ़ी नहीं खेलता है तो वर्ल्ड कप भी नहीं खेल पाएगा
इतना ही नहीं अगर बीसीसीआई चैंपियंस ट्रॉफी में नहीं खेलता है तो भविष्य में वो 2 वर्ल्ड कप में भी नहीं खेल पाएगा. क्या कोहली और उनके साथी खिलाड़ी ऐसे फैसले का समर्थन करेंगे? ज़ाहिर सी बात है कभी नहीं. कुल मिलाकर देखा जाए तो खुद को अहम बनाने या फिर अहम दिखाने की कोशिश में बीसीसीआई एक बार फिर से पूरी दुनिया के समाने भारतीय क्रिकेट की छवि को और ख़राब करने की ही ज़िद में अड़ी हुई है.