अपनी गोपनीय रिपोर्ट में जस्टिस भोसले ने कहा, ’18 जुलाई 2016 को पोक्सो जज के रूप में लक्ष्मी कांत राठौर की तैनाती की गई थी और वह बेहतरीन काम कर रहे थे। उन्हें अचानक से हटाने और उनके स्थान पर 7 अप्रैल 2017 को ओपी मिश्रा की पोस्को जज के रूप में तैनाती के पीछे कोई औचित्य या उपयुक्त कारण नहीं था। मिश्रा की तैनाती तब की गई जब उनके रिटायर होने में मुश्किल से तीन सप्ताह का समय था।’
आपको बता दें कि अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के खिलाफ रेप के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने 17 फरवरी को एफआईआर दर्ज की थी। उन्हें 15 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया था। 24 अप्रैल को उन्होंने जज ओपी मिश्रा की अदालत में जमानत की अर्जी दी और उन्हें मामले की जांच जारी रहने के बावजूद जमानत दे दी गई।
आईबी ने अपनी एक रिपोर्ट में ओपी मिश्रा की पोक्सो कोर्ट में पोस्टिंग में भ्रष्टाचार की बात कही है। इस रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश में न्यायपालिका में ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ओपी मिश्रा की ईमानदारी संदेह के घेरे में है और उनकी छवि भी अच्छी नहीं है।’इस जांच में सामने आया है कि कैसे बार असोसिएशन के पदाधिकारी तीन वकीलों ने मिश्रा की पोक्सो कोर्ट में तैनाती की डील फिक्स कराई। प्रजापति को जमानत मिलने के तीन-चार सप्ताह पहले मिश्रा के चैंबर में जिला जज और तीनों वकीलों के बीच कई बार बैठकें हुईं। इनके बीच आखिरी बैठक 24 अप्रैल को हुई और इसी दिन प्रजापति ने मिश्रा की कोर्ट में जमानत अर्जी दी थी।