मसलन पुणे का उदाहरण ले लें जहां बीजेपी ने शरद पवार की एनसीपी को हराकर महानगरपालिका (पीएमसी) पर कब्जा जमाया है। पीएमसी में बीजेपी के लिए जीत हासिल करने वाले आधे से ज्यादा उम्मीदवार एनसीपी, कांग्रेस या शिव सेना से पार्टी में आए थे। यही हाल पिंपरी चिंचवाड महानगरपालिका (पीसीएमसी) का रहा। बीजेपी ने पीसीएमसी भी एनसीपी से छीना है। यहां भी बीजेपी ने पार्टी की कमान एनसीपी के एक पूर्व नेता के हाथ में सौंपी थी। इस नेता ने एनसीपी के अजित पवार के करीबियों को पार्टी में शामिल करवाया।
बीजेपी की इस रणनीति का शिकार केवल एनसीपी नहीं हुई। मसलन नासिक को ही ले लें। राज ठाकरे की मनसे के कब्जे वाली नासिक महानगरपालिका (एनएमसी) पर झंडा लहराने के लिए बीजेपी ने मनसे की लगभग पूरी जिलाई इकाई को फोड़ लिया और जीत हासिल करने में कामयाब रही। अमरावती महानगरपालिका (एएमसी) में भी बीजेपी की जीत का श्रेय कांग्रेस और एनसीपी के पुराने नेताओं से हाथ मिलाने के बाद ही मिली है।