नवंबर के बाद चुनावी फिजां में नोटबंदी छा गया, सब मुद्दे पीछे छूट गए। बीजेपी को लगा कि पीएम ने यूपी के साथ-साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का इंतजाम कर दिया है। शुरुआत में गरीब और अमीर के बीच का अंतर सरकार की स्क्रिप्ट के हिसाब से, कैंपेन के हिसाब से ठीक काम कर रहा था, लेकिन लचर कुप्रबंधन से उपजे लोगों की मुसीबतों ने किए-कराए पर पानी फेर दिया। प्रधानमंत्री भले ही अभी भी कैशलेस कथानक के साथ मैदान में डटे हैं, लेकिन चुनाव लड़ रही बीजेपी आशंकित से भयभीत होने की तरफ बढ़ रही है, लिहाजा बीजेपी के यूपी कैंपेन कथानक में फिर से तब्दीली की गई है। अब फिर से सपा सरकार की इंटी इनकम्बेंीसी प्रमुखता पर आ गई है।
अब जो मोदी को जानते हैं, वो मानते हैं कि बीजेपी इस कथानक पर चुनाव नहीं लड़ने वाली। इस कथानक पर गाडी थोड़ी पटरी पर आ सकती है, लेकिन जीतने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि जमीन पर ब्रांड अखिलेश उतना कमजोर भी नहीं है। ऐसे में नोटबंदी के पिटने पर एक नए कथानक की गुजाइंश बची है, जो नोटबंदी के फैसले को लागू करने के कुप्रबंधन के कारण दरकती कुशल, अनुभवी सरकार की इमेज को फिर से चट्टान की तरह मजबूत बनाए। चुनाव की तारीखों का ऐलान इस महीने के आखिरी हफ्तों में होने वाला है।और तैयार रहिए किसी नए कथानक के लिए।