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वहीं दूसरी तरफ मुलायम भी मुसलमानों की आंखों का तारा रहे हैं। 1990 में बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था। इस घटना के बाद विरोधियों ने उन्हें ‘मौलाना मुलायम’ की उपाधि दी थी। अपनी पार्टी के 3 कार्यकालों में उन्होंने तमाम आरोपों के बावजूद मुलायम, मुस्लिमों के प्रति वफादार रहे।
सच्चर समिति की सिफारिशों के तहत मुलायम ने मुस्लिम आरक्षण का वादा किया। इसके तहत 2012 के यूपी चुनावों मे विधानसभा पहुंचे रेकॉर्ड 68 मुसलमानों में से 43 एसपी से थे।
अब मायावती भी मुसलमानों को आकर्षित करने के लिए मुख्य प्रतिद्वंदी मुलायम की ही राह पर चल रही हैं। मायावती अपने इस दांव में कितनी सफलता हासिल कर पाएंगी यह तो पहले दो राउंड के बाद काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगा।
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