बिहार के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि नीतीश और जदयू के यूपी चुनाव से दूर रहने का सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। माना जाता है कि यूपी में कुर्मी समुदाय भाजपा के साथ है। नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से ही आते हैं। ऐसे में अगर वो यूपी में भाजपा के खिलाफ प्रचार करेंगे तो भाजपा के इस वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा रहेगा। कहा जा रहा है कि ऐसे में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती और इसीलिए उसने जदयू के साथ अंदरखाने समझौता कर लिया है। लेकिन क्या सचमुच दोनों दलों के बीच ऐसी कोई डील हुई है? जनसत्ता वेबसाइट पर छापी खबर के मुताबिक बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के घर आयोजित ‘चाय पार्टी” पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता इस सवाल पर छूटते ही बोले, “इसमें आपको शक है क्या?”
जदयू के यूपी से जुड़े कई नेताओं और कार्यकर्ताओं से बात करने पर एक ने भी ये नहीं कहा कि नीतीश और जदयू से यूपी से दूरी का फायदा सपा-कांग्रेस को मिलेगा। लखनऊ निवासी जदयू की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य प्रोफेसर केके त्रिपाठी कहते हैं, “मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पार्टी हाई कमांड का ये निर्णय भाजपा को इलेक्टोरल जंग में जीत दिलाने में सहायक होगा। हमलोगों में इस निर्णय को लेकर आक्रोश, हताशा और निराशा है। अभी से बहुत कार्यकर्ता भागकर बीजेपी का प्रचार करना शुरू कर दिए हैं।” त्रिपाठी आगे कहते हैं, “यूपी के पोलिटिकल वातावरण में ये कामन परसेप्सन है कि हम लोगों द्वारा भाजपा को हेल्प किया जा रहा है।’’
त्रिपाठी का मानना है कि अगर जदयू आलाकमान सचमुच भाजपा को चुनावी पटकनी देना चाहता है तो उसे खुलकर सपा-कांग्रेस गठबंधन के समर्थन में आ जाना चाहिए। त्रिपाठी मानते हैं कि जदयू आलाकमान को पार्टी कार्यकर्ताओं के पास मैसेज भेजना चाहिए कि वो भगवा पार्टी को शिकस्त देने के लिए जी जान से लग जाएं।” त्रिपाठी कहते हैं, “लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है, जिससे हमलोगों को शक पैदा हो रहा है कि दाल में कुछ काला है।”