मायावती अगर किंगमेकर बनीं तो क्या होगी यूपी की राजनीतिक सूरत

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मायावती

ये राजनीति है। यहां कुछ भी संभव है। यहां नीतीश, लालू से हाथ मिला सकते हैं, जिनकी पूरी राजनीति ही लालू के विरोध पर टिकी थी। यहां राहुल अखिलेश से हाथ मिला सकते हैं, जिन्होने चुनाव की रणभेदी अखिलेश का विरोध कर के फूंकी थी (27 साल यूपी बेहाल का नारा)। यहां सबकी अपनी बिसात अपने मोहरे हैं। और बात जब यूपी की राजनीति की हो फिर राजनीतिक बिसात के घोड़े और तेजी से दौड़ने लगते हैं। इतनी तेजी से कि 17-18 सालों से सत्ता से बाहर रहने वाली बीजेपी सत्ता में आने के ना सिर्फ़ ख्वाब देख रही है बल्कि तेजी से बढ़ भी रही है, पांच साल तक शासन करने वाले अखिलेश अपनी सत्ता वापस पाने के लिए अपने काम की फ़ेहरिस्त लेकर घूम रहे हैं, हर बार की तरह कांग्रेस इस बार भी अपनी शाख बचाने में लगी है और मायावती दलित-मुसलमानों की चिंता करते नहीं थक रही हैं।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश के लोग किसका दामन थामेंगे। जवाब बहुत स्पष्ट नहीं है। दिमाग में बहुत अंगुली घुसेड़ने पर यूपी की फ़िल्म का जो सियासी पर्दा दिखाई देता है, उसमें खंडित जनादेश लिखा नजर आता है। जी, बिल्कुल 1996 की तरह, जब यूपी की सियासत बीजेपी, सपा और कांग्रेस-बसपा के बीच त्रिकोणीय संघर्ष की गवाह बनी थी। उस समय भी यूपी की सियासी लहर बहुत कुछ आज जैसी ही थी, फ़र्क सिर्फ़ ये था कि तब कांग्रेस साइकिल की जगह हाथी पर सवार थी। तब कांग्रेस ने 33 सीटें जीती थी बसपा की झोली में 67 सीटें थी, जबकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसके पास 174 सीटें थीं। उस समय राजनीतिक सीन कुछ ऐसा बना कि केंद्र में कांग्रेस के रहमोकरम पर घिसट रही देवगौड़ा सरकार और उनके रक्षा मंत्री मुलायम, मायावती की सरकार नहीं बना सके। लेकिन कांशीराम ने एक ऐसी चाल चली कि वो भारत की राजनीति में एक इतिहास के साथ साथ एक मिसाल भी बन गया। बीएसपी और बीजेपी में एक डील हुई। वो डील ये थी कि दोनो मिलकर सरकार बनाएंगे, और हर छ महीने में मुख्यमंत्री बदला जाएगा। लेकिन मायावती ने इसमें अपना मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए पहले मुख्यमंत्री बनने पर बीजेपी को मना लिया। हालांकि अपने छ महीने के शासन के बाद मायावती ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और बीजेपी का मुखयमंत्री बनने का सपना सपना ही रहने दिया।

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अब जरा आज के परिदृश्य पर नजर डालिए। आज फिर से यूपी 1996 की हालत में ही आगे बढ़ रहा है। लेकिन आज केंद्र में न कांग्रेस समर्थित सरकार है और ना ही सपा की केंद्र सरकार में कोई भगीदारी है। ओपिनियन पोल पर नजर डाले तो बीजेपी को 180-191, सपा-कांग्रेस गठबंधन को 168-178, बसपा को 39-43 जबकि अन्य को 1-4 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। मतलब एक बार फिर से बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होगी, लेकिन सरकार बनाने की हालत में नहीं होगी, सपा को कहीं और से समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं होगी और मायावती खुद को सत्ता से दूर पाएंगी। लेकिन राजनीति यहीं से शुरू होती है साहब। तीनो पार्टियों के पास बहुमत नहीं होगा और तीनों ही पार्टियां बहुमत पाने के लिए राजनीतिशास्त्र के हर फॉर्मूली को आजमा लेंगी। बीजेपी और सपा-कांग्रेस गठबंधन की निगाहें मायावती की तरफ़ होंगी। इस परिदृश्य में उत्तर प्रदेश उस मुकाम पर खड़ा होगा जहां मायावती जिसके सिर पर हाथ रखेंगी, वहीं सूबे का सरदार बनेगा। मतलब मायावती यूपी की किंगमेकर बनेंगी।

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तो अब सवाल है कि अगर मायावती यूपी में किंगमेकर की हैसियत से उभरती हैं तो वो किस पाले की तरफ़ जाएंगी- बीजेपी या सपा कांग्रेस गठबंधन? थोड़ा सोचने पर इस प्रश्न का कुछ अस्पष्ट सा लेकिन जवाब दिखने लगता है। मायावती से बीजेपी ‘छांछ की जली है’, इसलिए वो ‘दूध भी फूंक फूंक पर पिएगी’। अगर बीएसपी और बीजेपी के गठबंधन की बात भी उठती है तो मायावती फिर से खुद को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख सकती हैं जिसे बीजेपी किसी भी सूरत में नहीं मानेगी। मायावती, बीजेपी से खुद को मुख्यमंत्री की मांग सिर्फ़ एक ही वजह कर सकती है कि बीजेपी के पास मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं है- हालांकि मायावती को भी ये बात मालूम है कि बीजेपी के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा भले ही ना हो, लेकिन मुख्यमंत्री बनाने लायक कैंडिडेट बहुत हैं। तो बीजेपी से मायावती की ये डील तो हो नहीं सकेगी ये तो पक्का है। अब बचती है सपा। मायावती किसी भी सूरत में ये नहीं चाहेंगी कि फिर से इलेक्शन हो, क्योंकि अगर दुबारा इलेक्शन होगा तो पूरी उम्मीद है कि इस बार सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी अगली बार पूर्ण बहुमत हासिल कर ले। इस तरह से मायावती किंगमेकर की हैसियत भी खो देंगी। तो ले-देकर मायावती के पास सपा-कांग्रेस गठबंधन को समर्थन देने के अलावा कोई सूरत नहीं बचती।

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अब यहां पर कहने वाले कह सकते हैं कि सपा को समर्थन देने से पहले मायावती क्या ‘गोली कांड’ और ‘गेस्ट हाउस कांड’ भूल जाएंगी? तो इसी सवाल के जवाब के साथ ही इस लेख की शुरूआत हुई थी। ये राजनीति है, यहां कुछ भी हो सकता है। यकीन न हो तो बिहार पर नजर डाल लीजिए। लेकिन ये याद रखिए यूपी का राजनीतिक परिदृश्य मायावती को किंगमेकर बनाने की तरफ़ ही बढ़ रहा है।