देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी कुनबे में कलह चल रही है। एक बड़ा वर्ग मान रहा है कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में पद और अधिकार के लिए संघर्ष हो रहा है तो दूसरा वर्ग मान रहा है कि ये अखिलेश यादव की इमेज बिल्डिंग और 2017 के चुनाव में उन्हें एक मजबूत नेता के तौर पर पेश करने की रणनीति का हिस्सा है।
अमर उजाला की खबर के मुताबिक साल 2012 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाले अखिलेश यादव को विपक्षी पार्टियां कमजोर नेता के तौर पर प्रचारित करती रही हैं। भाजपा, बसपा और कांग्रेस लगातार कहती रही हैं कि प्रदेश को साढ़े तीन मुख्यमंत्री चला रहे हैं। अखिलेश अपनी मर्जी से कुछ कर नहीं पाते हैं। इन चीजों से अखिलेश की छवि कमजोर होती जा रही थी।
ऐसी स्थिति में जुलाई 2016 में कौमी एकता दल के सपा में विलय को रोकने और इसमें अहम भुमिका निभाने वाले प्रदेश के बड़े मंत्री बलराम यादव को कैबिनेट से निकालकर अखिलेश ने अपने सख्त तेवर दिखाए थे। यहीं से लगातार चीजें बदलती गईं और स्थिति यहां पर आ गई कि गुरुवार को एक इंटरव्यू में अखिले ने कहा, ‘मुझे हराना आसान नहीं, मैं अपने दम पर लड़ना जानता हूं। मैं जब चाहूंगा अपनी रथयात्रा निकालूंगा।’
कौमी एकता दल के विलय से शुरू विवाद के बाद अखिलेश और शिवपाल में बात इतनी बढ़ी कि घर के चौके की बात चौक-चौराहे तक आ गई। लोग परिवार में ही दो खेमा बनने की बात करने लगे। इस तकरार में मुलायम सिंह के एक और भाई रामगोपाल यादव भी कूद पड़े और अंत में मुलायम सिंह यादव ने हस्तक्षेप करके मामला शांत कराने की कोशिश की।