इस सिलसिले में सबसे ज्यादा हैरतअंगेज और सनसनीखेज दास्तान सपा नेता बुक्कल नवाब उर्फ एम.ए.खान को सरकारी जमीन पर बिना स्वामित्व जांचे ही आठ करोड रु के मुआवजे का दिया जाना है। हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव की पीठ ने प्रमुख सचिव राजस्व को इसलिये जमकर लताड लगायी थी कि सात मार्च को दिये गये पीठ के निर्देश के बावजूद, उन्होंने न तो जिम्मेदार अधिकारियों के नाम सामने रखे और न ही किसी के खिलाफ कार्यवाही ही की है।
आरोप है कि बुक्कल नवाब ने हजरतगंज से कुछ ही फासले पर स्थित जियामऊ और आसपास के इलाके में अपना मालिकाना हक जताया था। गोमती नदी के किनारे विकास कार्य शुरू होने पर सरकार ने जब भूमि अधिग्रहण किया, तो बुक्कल नवाब ने गोमती के डूब क्षेत्र को भी अपना बताते हुए मुआवजे का दावा किया था। इस पर शासन ने इस जमीन की जांच कराये बिना ही उन्हें उस पर आठ करोड रु. से भी अधिक का मुआवजा दे दिया। 2015 में गोमती के पानी में डूबी हुई जमीन पर दुबारा काम शुरू हुआ। इस पर बुक्कल नवाब ने फिर दावा किया, तो उन्हें पुनः मुआवजा देने की तैयारी शुरू कर दी गयी। इसके विरुद्ध हाइकोर्ट में दायर याचिका के बाद कोर्ट ने अखिलेश सरकार को आदेश दिया कि वह अक्टूबर, 2016 में उच्चस्तरीय समिति बनाकर तीन महीने के अंदर ही अपनी रिपोर्ट दे। लेकिन, सरकार ने कोर्ट के इस आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसके बाद कोर्ट ने कडे आदेश देकर उक्त कमेटी बनवाकर जांच शुरू कराई। इस पर राजस्व विभाग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि जिन दस्तावेजों के आधार पर बुक्कल नवाब ने मुआवजे के लिये अपना दावा जताया था, उसके दस्तावेज फर्जी निकले हैं। कई जगह राजस्व विभाग के रिकार्डं में भी बदलाव किये गये हैं। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 1920 में ही जिस भूमि को लखनऊ नगर निगम ने अपने अधिग्रहण में ले लिया था, उसे निजी भूमि बताते हुए फिर से अधिगृहीत करवा लिया गया और करोडों रु उसका मुआवजा भी दिलवाया गया।