दिलशाद कहते हैं कि ‘पाकिस्तान ने हमारा भूगोल, इतिहास और संस्कृति सब मिटाने की ठान ली है। हमारे बच्चों को ऐसी तालीम दी जा रही जिससे वे अपनी जड़ों से कट जाएं। स्कूलों में पढ़ाया जाता है कि इकबाल और जिन्ना ही तुम्हारा इतिहास है।’ मीर ओ बलूच के बारे में नहीं बताया जाता। पाकिस्तान सरकार के बनाए स्कूल में बच्चों को पाकिस्तान का कौमी तराना गाना सिखाया जाता है। किताबों में बलूच का मतलब बार्बेरिक (जंगली/बर्बर)और खानाबदोश बताया जाता है। लेकिन आजाद ख्याल बच्चे बलूचिस्तान की बातें भी करते हैं और अपना कौमी तराना भी गाते हैं। पाकिस्तान से आए शिक्षक फौजी अफसरों से इन बच्चों की शिकायतें करते हैं और बच्चों पर फौज जुल्म ढाती है। हर बच्चे के घर में कोई शहीद है या गायब है। वे देख रहे हैं कि कैसे बलूच लोगों को मार कर उनकी आंखें, गुर्दे निकाल कर खोखली लाशों को उनके घर के आगे फेंक दिया जाता है। लाशों पर भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे गोद दिए जाते हैं।
बलूच बच्चों की आंखों में अपने लोगों के कातिल कैद हो रहे हैं। और पाक फौज का यही जुल्म बलूचों की आजादी के लिए लड़ने के लिए नायक पैदा कर रहे हैं। हमारी आजादी किसी खास कबीले या फौज की लड़ाई नहीं है। छात्र, घरेलू महिलाएं, इंजीनियर और हर कामगार की लड़ाई है। इस साल पंद्रह अगस्त को लालकिले से उठा बलूचिस्तान का नाम और उसके बाद बदला माहौल। इस पर दिलशाद कहते हैं कि हम नरेंद्र मोदी जी के बहुत शुक्रगुजार हैं और अब यह महसूस कर बहुत हिम्मत बंध रही है कि हम अकेले नहीं हैं। इसका असर तो दूर तक दिख रहा है। दिल्ली की सड़कों पर किसी बलूच से कोई पूछ बैठता है कि आप लोग वही हैं न जिसकी बात मोदी जी ने की थी। हम चाहते हैं कि अंतरराष्टीय मंच पर 9/11 (अमेरिका में ट्वीन टावर पर हमला) की बात हो तो बलूचिस्तान में पाक के आतंक की भी बात हो।