बलूचिस्तान के कार्यकर्ता माज्दाक दिलशाद बलूच देश में महिलाओं व बच्चों को लेकर परेशान हैं। जब उनसे बलूचिस्तान के हालातों के बारे में पूछा गया तो उन्होने कहा कि “सबका एक ही जैसा हाल है और सब एक ही तरह से बहादुरी से जुल्मी हुकूमत का सामना कर रहे हैं। वहां पर महिलाओं की जनसंख्या के बारे में पूछने पर दिलशाद बलूच कहते हैं कि “मैं आपको अचानक से पक्का आंकड़ा तो नहीं बता सकता लेकिन बराबरी पर दिखती हैं, घर-सड़क, बाहर और स्कूल हर जगह बराबरी पर दिखती हैं। कहीं-कहीं तो मर्दों से ज्यादा दिखती हैं। बहुत जुल्म सहा है और सहते हुए आगे बढ़ रहे हैं। हां औरतों को मर्दों से ज्यादा जुल्मों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की अस्मत लूटी जा रही है।”
दिलशाद बहुत साफ जबान में उर्दू मिश्रित हिंदी बोल रहे थे। हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान ने जोर से उर्दू मुझ पर मुसल्लत की है। बलूचिस्तान के माहौल के बारे में कहते हैं कि हमारी कबीलाई संस्कृति है। वे कहते हैं कि कबीलाई संस्कृति सबसे ज्यादा आजाद ख्याल रहती है और जम्हूरियत के जज्बे के कारण वह किसी के जेरे कब्जा नहीं रह सकती है। बलूच नेता कहते हैं कि हम एक भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान हैं। हमारे यहां हिंदू को हिंदू बलूच बताते हैं। वहां हिंदू आराम से रहते हैं। दिल्ली में 5000 बलूचिस्तान हिंदू एसोसिएशन हैं। यह मिसाल हर क्षेत्र में नहीं मिलेगी। बलूचिस्तान का सिख, मुसलमान, ईसाई सब एक राष्ट की पहचान हैं। दिलशाद कहते हैं कि संसाधनों से भरा एक इलाका और छोटी सी आबादी। बलूचिस्तान उपनिवेश बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ योग्यता रखता है और पाकिस्तान की लालची नजर सिर्फ हमारे संसाधनों पर थी इसलिए उसने हमारा नामोनिशां मिटाने की कोशिश की।किसी भी देश, सभ्यता या संस्कृति के वाहक बच्चे ही होते हैं।
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