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रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर की झेलम और नीलम नंदियों पर वुलार बैराज और किशनगंगा परियोजना इसी तरह की समस्या को सामने रखती हैं, जहां रबी की फसल के दौरान पानी की कमी की स्थिति गंभीर हो जाती है और खरीफ के दौरान प्रवाह 20 फीसदी तक रह जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 40 वर्षों से सिंधु जल संधि ने विवाद के समाधान का अनोखा उदाहरण रही है। 1990 के दशक की शुरूआत में पानी की कमी ने संधि में तनाव पैदा किया। हकीकत यह है कि अब इस संधि के कायम रहने की उम्मीद बहुत कम लगती है, हालांकि इस संधि से बाहर निकलने की कोई वजह नहीं है।
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