चीन और अमेरिका ने पेरिस जलवायु परिवर्तन करार को अपना समर्थन दिया

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अमेरिका चाीन

 

दिल्ली:

दुनिया में करीब 40 फीसदी कार्बन गैस उत्सर्जित करने वाले चीन और अमेरिका ने पेरिस में पिछले साल हुए जलवायु परिवर्तन करार का आज संयुक्त रूप से अनुमोदन कर दिया जिससे इस संधि को साल के अंत तक प्रभावी बनाने की उम्मीद बढ़ गई।

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने यहां संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को दस्तावेज सौंपे।

जी 20 के शिखर सम्मेलन से एक दिन पहले दोनों देशों ने इस करार को अनुमोदित किया।

अमेरिका और चीन दोनों दुनिया में होने वाली ग्रीनहाउस गैसों के 40 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए करार के उनके अनुमोदन को अहम माना जा रहा है।

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हांगझोउ में एक कार्यक्रम में ओबामा ने कहा कि पेरिस समझौता ‘एकमात्र एक ऐसा मौका है जिससे इस ग्रह को बदलने वाली समस्या से निपटा जा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने जो लक्ष्य तय किया है उस ओर हम बढ़ रहे हैं।’’ शी ने कहा कि उनको उम्मीद है कि दूसरे देश भी इस कदम का अनुसरण करेंगे और अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए नयी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करेंगे।

जलवायु परिवर्तन पर 1992 के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंसन और 1997 के क्योतो प्रोटोकाल के बाद जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के समाधान की यह तीसरी कोशिश है।

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इस करार में वैश्विक तापमान में इजाफे पर अंकुश लगाने और गरीब देशों को खरबों डालर देने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं। जब 55 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करने वाले कम से कम 55 देश इसका अनुमोदन कर देंगे तो उसके 30 दिन के अंदर यह संधि प्रभावी हो जाएगी।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति के सांसदों ने ‘‘पेरिस संधि की समीक्षा एवं अनुमोदन का प्रस्ताव’’ स्वीकार करने के लिए वोट दिए।

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प्रस्ताव में कहा गया है कि करार का अनुमोदन चीन के विकास के हितों में है और यह देश को वैश्विक जलवायु प्रशासन में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने में मदद करेगी।

चीन समेत दुनिया के 196 देशों ने 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में पेरिस समझौते पर दस्तखत किए थे और इस तरह वैश्विक तापमान में इजाफे के खिलाफ विश्व समुदाय को एक मजबूत संदेश दिया था।