फिर दोहराया गया 500 साल पुराना इतिहास, ‘कलयुग की मीरा’ ने श्रीकृष्ण से की करिश्माई शादी…

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श्रीकृृष्णा

भक्ति में शक्ति है, ये कहवात तो आपने कई बार सुनी होगी। सच्चे भक्त के लिए भगवान से बढ़कर कोई रिश्ता मायने नहीं रखता। 500 साल पहले श्रीकृष्ण को अपना पति मानने वाली मीरा के किस्से तो आप सभी ने खूब पढ़े और सुने होंगे। लेकिन मीरा जैसी महिला कलयुग में हो जाए तो बड़ी हैरत होती है। हो भी क्योंकि श्रीकृष्ण कोई इंसान तो हैं नहीं कि उनसे शादी कर परिवार बसाया जा सके। वो तो आत्मा और प्रेम बनकर लोगों की सांसों में बस जाते हैं। अब ये भक्त के ऊपर हैं कि वो श्रीकृष्ण से क्या रिश्ता जोड़ ले। प्रेमी, पति, संतान या फिर भगवान… उन्हें जिस रूप में अपनाओ वो उसी रूप में आपके हो जाएंगे।

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में एक अनोखी शादी हुई है। इस शादी ने 500 साल पहले के इतिहास को दोहराया है। जिले के दिगोड़ा गांव में 22 साल की एक नेत्रहीन युवती शालिनी ने अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण से शादी कर सोलहवीं सदी की भक्तिकालीन कवयित्री मीराबाई की परंपरा को आगे बढ़ाया है। इस शादी में सभी रस्में ठीक उसी तरह निभाई गईं जैसे गांव में किसी अन्य शादी में निभाई जाती रही हैं। मसलन, शालिनी को हल्दी लगाई गई, हाथों में मेहंदी सजाई गई। गांव के ही गोपाल मंदिर से पूरे ढोल-बाजे के साथ भगवान श्रीकृष्ण की बारात भी निकाली गई जो शालिनी के दरवाजे तक पहुंची।

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इससे पहले बारात ने पूरे गांव की परिक्रमा की। गांव वाले भी खुशी-खुशी इस बारात में शामिल हुए। जब बारात शालिनी के दरवाजे पर पहुंची तो दशकों से चली आ रही रस्म और रिवाज के मुताबिक वर परीक्षण हुआ। महिलाओं ने मंगल गीत गाए। फिर दोनों का वरमाला हुआ। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे को माला पहनाई और शादी की। शालिनी की इस अनोखी, भव्य और आध्यात्मिक शादी के वक्त गांव और आसपास के सैकड़ों लोग मौजूद थे। इस शादी समारोह के लिए पंडाल लगाए गए थे। स्टेज भी सजाए गए थे, जहां दोनों वर-वधू बैठे थे और लोग शालिनी को आशीर्वाद दे रहे थे।

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इस शादी के बाद से इलाके में शालिनी की चर्चा है। शालिनी बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानती रही है। वह बचपन से ही उन्हें पूजती रही है। भगवान श्री कृष्ण में उसकी गहरी आस्था है, इसीलिए उसने उन्हें जीवन भर के लिए अपना आराध्य बना लिया। कहा जाता है कि जब कोई इंसान भगवान की भक्ति में लीन हो जाता है तो उसे दुनियादारी की कोई फिक्र नही रहती है। अगर उसे चिंता होती भी है तो सिर्फ अपने आराध्य की जिसके सामने उसे कुछ भी नही दिखता।

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आज से करीब 500 साल पहले राजस्थान के उदयपुर रजवाड़े की बहू रही मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की थी और उनके प्रेम में कई काव्य रचनाएं की थीं। कहा जाता है कि मीराबाई को उदयपुर राजघराने के लोगों ने सती करने की कोशिश की थी लेकिन वो सती नहीं हुईं। बाद में जब वो श्रीकृष्ण के प्रेम में चारों ओर नाच-गाकर अपनी भक्ति भावना का प्रदर्शन करती थीं, तब भी कई बार उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी लेकिन वो हर बाच गईं। अंतत: वो संवत 1554 ईस्वी में द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गई थीं।